देहरादून: बृहस्पतिवार को पिरुल यानि चीड़ के पत्तों से बिजली बनाने की नीति को मंजूरी मिल गई। कई सालों से अधर में लटकी इस निति का ड्राफ्ट उरेडा ने तैयार किया है। प्रदेश में इससे 150 मेगावाट बिजली पैदा करने की संभावना जताई गई है। साथ ही 2019 तक एक मेगावाट व 2030 तक 100 मेगावाट बिजली बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
आपको बता दें कि, इस नीति को वन विभाग सहित अन्य विभागों की मंजूरी मिलने के बाद सचिव समिति की बैठक में रखा गया था। सचिव समिति ने भी नीति को अपनी हरी झंडी दे दी है। पिरुल से बिजली बनाने का संयंत्र लगाने की जिम्मेदारी वन पंचायतों, गैर सरकारी संगठनों और सामुदायिक संगठनों को सौंपा जाएगा। पिरूल से बिजली बनाने की योजना से प्रदेश में 20 हजार लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है।
वहीँ पिरूल संयंत्र लगाने वालों को कई तरह की रियायत देने की बात इस नीति में कही गई है। साथ ही इसे उद्योग का दर्जा भी दिया गया है। साथ ही संयंत्र लगाने के लिए जमीन खरीदने पर स्टांप ड्यूटी में छूट मिलेगी।
प्रदेश के पर्वतीय जिलों में चीड़ के जंगल बहुतायत में उपलब्ध हैं। प्रतिवर्ष लगभग 15 लाख चीड़ की पत्तियां इन जंगलों में गिरती है। वर्तमान में इन पत्तियों को केवल स्थानीय निवासियों द्वारा अपने घरेलू उपयोग में ही इस्तेमाल किया जा रहा है। इन पत्तियों से प्रतिवर्ष जंगलों में आग लगने से वनों को नुकसान होने के साथ-साथ जंगली जीव-जंतुओं को भी क्षति हो रही है। ऐसे में इन पत्तियों के व्यवसायिक उपयोग कर विद्युत उत्पादन करने तथा विक्रेटिंग तैयार करने हेतु निति तैयार की गई है।