पिथौरागढ़: जिले की सोरघाटी में इन दिनों चैंतोला पर्व की धूम छाई हुई है। चैत्र माह की एकादशी से मनाया जाने वाला ये पर्व पूर्णिमा को समाप्त होता है। ये पर्व धार्मिक आस्था और भाई-बहिन के प्रेम का प्रतीक है और इसी तरह सदियों से मनाया जा रहा है। वक्त के साथ-साथ भले ही बहुत कुछ बदला हो लेकिन, इस पर्व के प्रति यहाँ के लोगों का लगाव और उत्साह अभी भी उसी तरह बरकरार है, जैसा सदियों पहले होता था।
आपको बता दें कि, सोरघाटी में चैतोंला पर्व 22 गॉवों में मनाया जाता है। भगवान शिव के भूमिया देव, देवलसमेत बाबा की छतरी और डोले को तैयार किया जाता है। उसके बाद इस छतरी को सभी 22 गॉवों में घुमाया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान के साथ देव डोला तैयार किया जाता है। डोले को चैत्र माह की एकादशी के दिन घुनसेरा गॉव से शुरु कर पूर्णिमा के दिन बिण, चैंसर, जाखनी, कुमौड़ होते हुये घंटाकरण शिव मंदिर लाया जाता है। लोग अच्छी फसल अच्छे स्वास्थ, समृद्धि की कामना करते है। भगवान शिव के गण बाबा देवसमेत अपने ने इलाकों में डोले और छत्र के माध्यम से अपनी प्रजा की रक्षा का वचन देने उनके गॉवों में इन दिनों भ्रमण करते है। जो परम्परा सदियों से इसी तरह से बदस्तूर चली आ रही है। जिसका निर्वहन आज भी इस सोर घाटी का समाज पूरी श्रद्धा से निभा रहा है।
समय बदलने के साथ स्थानीय समाज की मान्यताऐं भी बदली हैं। इन्ही मान्यताओं में चैतोंले के दिन भूमिया देव देवलसमेत बाबा जिसको लोकदेवता भी कहा जाता है अपनी 22 बहनों को भिटौली देने इन 22 गॉवों का भ्रमण करते है। इसी पर्व को चैतोले के नाम से भी जाना जाता है। इस सोरघाटी में इस पर्व को स्थानीय परम्परा के रुप मे पूजा और मनाया जाता है। लेागों की इस पवित्र पावन पर्व पर अपार श्रद्धा है। साल भर के इन्तजार के बाद आज सभी लोग अपने अराध्य देव की पूजा अर्चना कर अपनी मनोकामना पूरी होने का विश्वास लेते है। भगवान शिव के अपनी बहन के घर भौटोली देने के लिये जिसे डोले में विराजमान होकर जाते है उसमें कघा देना प्रसाद स्वरुप माना जाता है। लोगों का विश्वास है कि लोक देवता की कृपा से गांवों में किसी प्रकार के अनिष्ट नही आते । कृषि उत्पादन खूब होता है और सुख तथा समृद्धि आती है।