नैनीताल: हाईकोर्ट ने बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति को बहाल करने संबंधित एकलपीठ के आदेश के खिलाफ सरकार की ओर से दायर स्पेशल अपील में सुनवाई के बाद अगली सुनवाई के लिए 2 अप्रैल की तिथि नियत की है। न्यायमूर्ति वीके बिष्ट एवम न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
मामले के अनुसार रामनगर निवासी अरविंद कुमार ने खुद को पक्षकार बनाये जाने के लिए प्रार्थना पत्र दिया है। इस पर विपक्षी की ओर से आपत्ति फाइल करने का समय मांगा गया। उनका कहना था कि मन्दिर समिति राजीनीति का अखाड़ा बन गई है। मन्दिर का पैसा राजनीतिक पार्टियां अपने उपयोग में ला रही है, जबकि मन्दिर समिति एक्ट 1939 के सेक्सन 7 व 5 में लिखा है कि मन्दिर समिति से राजनीतिक पार्टियों का कोई मतलब नहीं है। मन्दिर समिति से राजनीतिक कार्य नहीं चलाए जा सकते है। यदि चलाये जाते हैं तो रिलिजियस इंस्टिट्यूशन प्रिमिनशन ऑफ मिसयूज एक्ट 1988 के आधार पर पांच साल की सजा और दस हजार जुर्माने का प्रावधान है और अभी तक राजनीतिक पार्टियां इसमें पूर्ण रूप से लिप्त है। बता दें कि पूर्व में बद्रीनाथ केदरनाथ मंदिर समिति के सदस्य दिवाकर चमोली व दिनकर बाबुलकर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि वर्तमान सरकार ने पहली अप्रैल 2017 को बिना किसी कारण के बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति को भंग कर प्रशासक नियुक्त कर दिया था। जिसको उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। पूर्व में एकलपीठ ने सरकर के इस आदेश को मंदिर समिति एक्ट 1939 के सेक्शन 11(अ) के विपरीत मानते हुए सरकार के आदेश पर रोक लगाते हुए मन्दिर समिति को बहाल कर दिया था। साथ में सरकार को यह आदेश दिए थे कि वे बद्री-केदार मंदिर समिति एक्ट 1939 के आधार पर उचित निर्णय ले, लेकिन सरकर ने 8 जून 2017 को पुनः एक्ट का संज्ञान लेते हुए मंदिर समिति को भंग कर दिया, जिसको मंदिर समिति के सदस्यों ने पुनः हाईकोर्ट में चुनोती दी। एकलपीठ ने मंदिर समिति को पुनः बहाल कर दिया था। 15 जून 2017 के एकलपीठ के आदेश को सरकार ने हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में चुनोती दी थी। पक्षो की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अगली सुनवाई के लिए 2 अप्रैल की तिथि नियत की गई है।