पेड़ों पर ही सड़ने को मजबूर है तैयार ‘माल्टा’

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रूद्रप्रयाग: पहाडों में माल्टा पक कर तैयार हो रहा है और अभी तक सरकार द्वारा समर्थन मूल्य तक घोषित नहीं किया गया है। माल्टा या तो बिचौलियों के हाथों बिक रहा है या फिर पेड़ों पर ही सड़ने को तैयार है। प्रशासन के विपणन केन्द्रों पर भी सन्नाटा पसरा हुआ है।

रूद्रप्रयाग जनपद में केदारघाटी, रानीगढ, बच्छणस्यूं, दष्ज्यूला, जखोली विकास खण्डं के कई गांवों में माल्टे का उत्पादन काफी मात्रा में होता हैं। इस साल रूद्रप्रयाग में करीब 588 मीट्रिक टन माल्टे का उत्पादन हुआ हैं लेकिन सरकारी उदासीनता के कारण ग्रामीण कास्तकारों को इसका सहीं मूल्य सही समय पर नहीं मिल पा रहा है। जिससे या तो इसे पक्षी खा रहे है या फिर पेड़ों पर ही सड रहा है। सरकार ने विगतवर्ष इसको तीन श्रेणीयो में बांटा था जो कि इस बार भी चल रहा है। ए श्रेणी के माल्टे का मूल्य 17 रूपये, बी श्रेणी के माल्टे को 13 रूपये तथा सी श्रेणी के माल्टे को 7 रूपये प्रति किलो घोषित किया गया हैं, वहीं तीनों विकास खण्डों में तीन विपणन केन्द्र बनाये गये है जो कि काष्तकारों की पहॅूच से काफी दूर हैं। इस वर्ष तीनों विकास खण्डों के विपणन केन्द्रों में एक भी दाना माल्टा का नहीं पहॅूच पाया।

इस साल भी सरकार माल्टे का समर्थन मूल्य घेाषित करने में देरी कर दी है। अभी तक माल्टे का समर्थन मूल्य घोषित नहीं हो पाया। पिछले साल का समर्थन मूल्य जारी हैं जो कि बहुत ही कम है। काष्तकारों का कहना है कि सरकारी देरी का नुकसान काष्तकारों को उठाना पडता है।

वहीं कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सूरज नेगी ने कहा कि काष्तकारों की आजीविका से जुडे उत्पादों का समय पर समर्थन मूल्य घोषित कर दिये जाने चाहिए जिससे उनकी सालभर की मेहनत का मेहनताना समय पर मिल सके और उत्पाद बिचैलियों के हाथों लुटने से बच सके।

सरकार स्वरोजगार के नारे को लेकर ग्रामीणों को प्रोत्साहित तो कर रही है मगर समय पर स्थानीय उत्पादों के समर्थन मूल्य घोषित न कर उनकी मेहनत को खेतों में सडने के लिए छोड दे रही है और यदा कदा मूल्य घोषित हो भी जा रहे हैं तो वो इतने कम हैं कि काष्तकारों को उनका मेहनताना भी नहीं मिल पा रहा है।

हालांकि हॉर्टिकल्चर विभाग के निर्देशक वीर सिंह नेगी ने हैलो उत्तराखंड न्यूज़ से बात करते हुए कहा कि जल्द ही इस पर विभाग द्वारा विचार कर लिया जियेगा। 

 

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