इस्लाम धर्म का पाक महीना – रमज़ान

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बबीता रयाल

इस्लाम धर्म में रमजान को पाक महीना माना जाता है। इस पाक महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोज़ा रखते हैं। रमजान के महीने में सूर्योदय से लेकर सूर्योस्त तक रोज़ा रखा जाता है, इस दौरान कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता है। पूरे महीने रात में विशेष नमाज अदा की जाती है, जिसे ‘’तरावीह’’ कहते हैं। रोज़े को अरबी भाषा में रमादान या सोम कहा जाता है। रमादान शब्द ‘रमाधा’ से आया है जिसका मतलब होता है कि ‘सूरज की गर्मी’ । रहमतों और बरकतो का ये महिना अच्छे कामों का सबब देने वाला होता है। इसी वजह से इस माह को कुरान शरीफ के नाज़िल का महिना भी माना जाता हैं।

रमज़ान का पाक महिना चल रहा है। लूनर कैलेंडर के अनुसार नौवें महीने यानी रमजान को 610 ईस्वी में पैगंबर मोहम्मद पर कुरान प्रकट होने के बाद मुसलमानों के लिए पवित्र घोषित किया गया था।

दुनिया भर में मुसलिम समुदाय के लिए रमजान का माह काफी अहमियत रखता है। इस साल रमजान का पहला रोजा 28 मई यानी रविवार से शुरू हुआ और 27 जून (ईद उल फितर) को खत्म होगा। जिसके अगले दिन ईद उल फितर होती है। हालांकि, ये तारीखें हर साल लगभग 11 दिन खिसक जाती हैं।

बतादें कि, अरब देशों में चांद दिख जाने की वजह से शनिवार को ही पहला रोजा रखा गया है। गौरतलब है कि अरब देशों में शनिवार को पहला रोज़ा होने से एशियाई देशों के मुस्लिमों में इस बात को लेकर संदेह की स्थिति बनी हुई थी जो अब दूर हो चुकी है। रोज़ा के दौरान न ही रोजादार कुछ खा सकता है और न ही कुछ पी सकता है। इस भरी गर्मी में इस बार रोज़े वाकई इंतिहान लेने वाले हैं। इस बार भारत में पहला रोज़ा ही 15 घंटे लंबा होगा। माना जाता हैं कि रमजान के पाक महीने में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं, इसलिए इस माह में किए गए अच्छे कर्मों का फल कई गुना ज्यादा बढ़ जाता हैं ,कहते हैं कि रमजान के पाक माह में दोजख यानि नर्क के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं।

रमजान पूरे एक महीने तक चलता है. जिसमें मुस्लिम सेहरी से लेकर इफ्तार की तैयारियां बड़े ही शौक से करते हैं. इस साल सबसे लंबा रोजा करीब 21 घंटे का होगा और सबसे छोटा करीब 11 घंटे का। बता दें इससे पहले इतना लंबा रोजा जून 1983 के रमजान में था। पाकिस्तान सहित कई इस्लामिक देशों में रोजे 14 घंटे के करीब के होंगे।

मुसलमान महीने भर सुबह से लेकर सूरज छिपने तक बिना खाएं पिएं रहते हैं- इस दौरान संयम का सिद्धांत लागू होता है। जो मुसलमान रोज़े रखते हैं वे सवेरे बहुत जल्दी उठ जाते हैं और सुबह से पहले ही खा लेते हैं जिसे सहरी कहते हैं. और शाम को वे इफ्तार के साथ अपना रोजा खोलते हैं। मुस्लिम धर्म में रोजा रखना अनिवार्य माना जाता है। लेकिन कुछ लोगों को छूट भी मिलती है। जैसे की बीमार, दूध पिलाने वाली महिला और अबोध बच्चों तो इस माह में रोजा रखने की छूट दी जाती है। लेकिन बाद में वो किसी दूसरे महीने में रोजा रख सकते हैं।

दान और सबाब का महीना

रमजान का महीना दान करने, पुण्य यानी सबाब कमाने और दरियादिली दिखाने के इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों से भी जुड़ा है. रमजान इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है. इसे सब्र यानी संयम को मजबूत करने और बुरी आदतों को छोड़ने का जरिया भी माना जाता है.

इस्लाम के पांच अन्य स्तंभों में धर्म पर सच्ची श्रद्धा रखना, नमाज पढ़ना, जकात यानी दान देना और हज करना शामिल है. मुसलमान रमजान के महीने में अक्सर दान देते हैं. इसके अलावा मस्जिदें और सहायता संगठन हर रोज रात को लोगों को मुफ्त में खाना खिलाते हैं.

रोजे रखने का मकसद मुसलमानों को यह याद दिलाना भी है कि गरीबों और जरूरतमंदों के प्रति दयाभाव रखना और उनकी मदद करना कितना जरूरी है.

क्या शिया और सुन्नियों के रमजान में कोई अंतर होता है?

दोनों के लिए रमजान के रीति रिवाज एक जैसे ही है. लेकिन कुछ थोड़े से अंतर भी हैं. मिसाल के तौर पर सुन्नी मुसलमान अपना रोजा सूरज छिपने पर खोलते हैं. मतलब उस वक्त सूरज बिल्कुल दिखना नहीं चाहिए. वहीं शिया लोग आकाश में पूरी तरह अंधेरा होने तक इंतजार करते हैं.

शियाओं के यहां रमजान के दौरान तीन दिन की छुट्टी अलग से होती है. ऐसा अली इब्न अबी तालिब की शहादत की याद में किया जाता है. वह इस्लाम के चौथे खलीफा और पैगंबर मोहम्मद के दामाद थे.

रमजान की परंपराओं में क्या अंतर है?

इंडोनेशिया के कुछ हिस्सों में मुसलमान लोग पवित्र महीना शुरू होने से पहले साफ पानी में खुद को जलमग्न कर देते हैं ताकि वे आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से शुद्ध हो सकें. इस तरह के स्नान को वहां ‘पादुसान’ कहते हैं.

पश्चिमी एशिया में रमजान के चौथे दिन को गारांगाओ के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन बच्चे पारंपरिक पोशाकों में सज धज कर कपड़े के थैले लिए पड़ोसियों के यहां जाते हैं और गरांगाओं गीत गाते हुए खजूर, टॉफी और बिस्किट जैसी छोटी मोटी चीजें जमा करते हैं.

मिस्र में रमजान के महीने के दौरान इफ्तार के समय सड़कों पर बड़ी-बड़ी लालटेनें लगाने की परंपरा है. इसके पीछे एक कहानी है कि मिस्र ने खलीफा मोएज एदिन अल्लाह का स्वागत काहिरा में लालटेन लटका कर ही किया था.

मध्य एशियाई देश ताजिकिस्तान में लोगों से गरीबों को सामान दान करने को कहा जाता है. इसके अलावा दुकानों से जरूरत की चीजें दाम कम करने की अपील भी की जाती है।

रोजे के दौरान कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होता है. रोजे को निभाने के लिए कई नियम भी होते हैं. – 

  • रोज़े का मतलब यह नहीं है कि आप खाएं तो कुछ न, लेकिन खाने के बारे में सोचते रहें. रोजे के दौरान खाने के बारे में सोचन भी नहीं चाहिए
  • इस्लाम के अनुसार पांच बातें करने पर रोज़ा टूटा हुआ माना जाता है. ये पांच बातें हैं- बदनामी करना, लालच करना, पीठ पीछे बुराई करना, झूठ बोलना और झूठी कसम खाना.
  • रोजे का मतलब बस उस अल्लाह के नाम पर भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है. इस दौरान आंख, कान और जीभ का भी रोज़ा रखा जाता है. इस बात का मतलब यह है कि न ही तो इस दौरान कुछ बुरा देखें, न बुरा सुनें और न ही बुरा बोलें.
  • रोजे का मुख्य नियम यह है कि रोजा रखने वाला मुसलमान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के दौरान कुछ भी न खाए.
  • रमजान के दौरान मन को भी शुद्ध रखना होता है. मन में किसी के लिए बुरे ख्याल नहीं लाने होते और पांच बार की नमाज़ और कुरान पढ़ी जाती है.
  • रमजान के महीने में इफ्तार के बाद ज्‍यादा से ज्‍यादा पानी पीयें. दिनभर के रोजे के बाद शरीर में पानी की काफी कमी हो जाती है. मर्दों को कम से 5 लीटर और औरतों को कम से कम 2 लीटर पानी जरूर पीना चाहिए.
  • इफ्तार की शुरुआत हल्‍के खाने से करें. खजूर से इफ्तार करना बेहतर माना गया है. इफ्तार में पानी, सलाद, फल, जूस और सूप ज्‍यादा खाएं और पीएं. इससे शरीर में पानी की कमी पूरी होगी.
  • सहरी में ज्‍यादा तला, मसालेदार, मीठा खाना न खाएं, क्‍यूंकि ऐसे खाने से प्‍यास ज्‍यादा लगती है. सहरी में ओटमील, दूध, ब्रेड और फल सेहत के लिए बेहतर होता है.
  • रमजान के महीने में ज्‍यादा से ज्‍यादा इबादत करें, अल्‍लाह को राजी करना चाहिए क्‍यूंकि इस महीने में कर नेक काम का सवाब बढ़ा दिया जाता है.
  • रमजान में ज्‍यादा से ज्‍यादा कुरान की तिलावत, नमाज की पाबंदी, जकात, सदाक और अल्‍लाह का जिक्र करके इबादत करें. रोजेदारों को इफ्तार कराना बहुत ही सवाब का काम माना गया है.
  • अगर कोई शख्‍स सहरी के वक्‍त रोजे की नियत करे और सो जाए, फिर नींद मगरिब के बाद खुले तो उसका रोजा माना जाएगा, ये रोजा सही है.
  • रमजान के महीने को तीन अशरों में बांटा गया है. पहले 10 दिन को पहला अशरा कहते हैं जो रहमत का है. दूसरा अशरा अगले 10 दिन को कहते हैं जो मगफिरत का है और तीसरा अशरा आखिरी 10 दिन को कहा जाता है जो कि जहन्‍नम से आजाती का है.
  • अगर कोई बीमार शख्‍स रमजान के महीने में जोहर से पहले ठीक हो जाता है और तब तक उसने कोई ऐसा काम नहीं किया हो जिससे रोजा टूटता हो, तो नियत करके उसका उस दिन का रोजा रखना जरूरी है.
  • अगर रोजेदार दांत में फंसा हुआ खाना जानबूझकर निगल जाता है तो उसका रोजा टूट जाता है.
  • मुंह का पानी निगलने से रोजा नहीं टूटता है. अगर किसी लजीज खाने की ख्‍वाहिश से मुंह में पानी आ जाए तो उस पानी को निगलने से रोजा नहीं टूटता है.
  • रमजान के महीने में इंसान बुरी लतों से दूर रहता है, सिगरेट की लत छोड़ने के लिए रमजान का महीना बहुत अच्‍छा है. रोजा रखकर सिगरेट या तंबाकू खाने से रोजा टूट जाता है.
  • रोजे की हालत में दांत निकलवाने से रोजा मकरूह हो जाता है, या रोजे में कोई ऐसा काम करने से जिससे मुंह से खून निकलने लगे, इससे भी रोजा मकरूह हो जाता है.
  • आपने अगर रोजे की हालत में पूरी तरह से गीले कपड़े पहन रखे हैं तो आपका रोजा मकरूह हो सकता है.
  • कोई खाने की चीज जिसके खाने से रोजा टूट जाता है, जबरदस्‍ती किसी रोजेदार के हलक में डाल दिया जाए और वो उसे निगल जाए तो रोजा नहीं टूटता है.
  • अगर किसी रोजेदार को जान और माल के नुकसान की धमकी देकर कोई खाना खाने को मजबूर करता है और रोजेदार उस नुकसान से बचने के लिए खाना खा लेता है तो रोजा नहीं टूटता है.

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