देहरादूनः उत्तराखंड राज्य गठन के दौरान अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले कुछ आंदोलनकारियों को तो सरकार ने चुन कर तमाम सुविधाएं दे दी, लेकिन कुछ आंदोलनकारी आज तक भी सरकार की योजनाओं से अछूते रह गए हैं।
जिसके लिए सरकार इन दिनों चिन्हिकरण का कार्य कर रही है। लेकिन सरकार के लिए चिन्हिकरण का कार्य किसी आफत से कम नहीं दिख रहा है। कई ऐसे आंदोलनकारी हैं जिनका कहना है कि वो आंदोलन के दौरान आंदोलन में शामिल थे लेकिन उनके पास इस बात का कोई सबूत नहीं। उनका यह भी कहना है कि सबूत जब पुलिस विभाग व संबंधित विभागों ने ही नष्ट कर दिए हैं तो भला हमारे पास सबूत कैसे हो सकते हैं ?
पिथौरागढ़ डीएम सी रविशंकर का कहना है कि आंदोलनकारियों की यह एक बड़ी समस्या सामने आ रही है, उन्होंने स्तिथि साफ करते हुए कहा कि चिन्हिकरण उन ही आंदोलनकारियों का किया जायेगा , जिनके पास सबूत हों। हालांकि डीएम ने इस सम्बन्ध में शासन को दिशा -निर्देश देने का भी आग्रह किया है।
वहीं हैलो उत्तराखंड न्यूज जब इस बाबत प्रमुख आंदोलनकारी मनोज ध्यानी से चिन्हिकरण की प्रक्रिया में अपनाई जाने वाली शासकीय मापकों के बारे में जानकारी लेने पहुंचा तो जवाब पाने के बजाए हमारे सामने कई और सवाल खड़े हो गए। मनोज ध्यानी का कहना है कि राज्य आंदोलन के दौरान प्रत्येक दिन डेढ़ लाख से भी ज्यादा धरने हुआ करते थे जिसमें 3 लाख से भी ज्यादा आंदोलनकारी शामिल होते थे। लेकिन उनका कहना है कि वास्तव में सरकार और शासन के लिए चिन्हिकरण करना इतना आसान नहीं है, पहले भी कई ऐसे आंदोलनकारी हैं जो आज आंदोलनकारियों के हिस्सों की मलाई चाट रहे हैं।
-जिससे सवाल उठना लाजमी है कि किन आधार पर चयनित ये आंदोलनकारी, आंदोलनकारी होने का फायदा उठा रहे हैं?
-क्या उस दौरान दस्तावेजों को दरकिनार कर उनको शह दी गई जो आंदोलकारी होने का दर्जा ही नहीं रखते?
To Be Continude…