60 के दशक में बना रूद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी पर बना केदारघाटी को जोड़ने वाला मोटर पुल शायद यही कह रहा है कि ये बोझ अब और नहीं सहा जाता है! जीर्ण शीर्ण हो चुका यह पुल अनहोनी की दस्तक दे रहा है किन्तु इसकी सुध लेने को कोई तैयार नहीं है!
करीब 60 साल का बूढ़े हो चुके इस पुल की दयनीय स्थिति की ओर न तो जिले के बडे अधिकारियों का ध्यान गया और न ही सम्बन्धित विभागों का. जबकि हर रोज इस पुल से गुजर रहे नेताओं और अधिकारियों ने भी इसकी सुध नहीं ली!
केदारघाटी की लाईफ लाईन कहे जाने वाले इस पुल से केदारनाथ यात्रा के साथ ही तुंगनाथ व मद्महेशवर की यात्रा भी चलती है जबकि एल एण्ड टी विद्युत परियोजना समेत कई निर्माण एजेंसियों की निर्माण सामग्रियों से लदे बडे माल वाहन भी इसी पुल से गुज़रते हैं! केदारघाटी के लिए खाद्य सामग्री, दूध, पेट्रोल डीजल व गैस के बडे ट्रक भी इसी पुल से गुज़रते हैं बड़ी बात यह है कि इस पुल निर्माण के बाद इस पुल में एक समय में एक ही बडा वाहन जाने की इजाजत थी। उस दौर में बकायदा पुल के दोंनो छोरो पर पुलिस कर्मी भी तैनात रहते थे। लेकिन आज स्थिति यह है कि उस दौर के मुकाबले वाहनों का बोझ चौगुना बढ गया है। तमाम तरह की निर्माण सामग्रियों से मालवाहनों से पुल जर्जर हो चुका है। जिससे पुल कभी भी किसी बडे हादसे को न्यौता दे सकता है। जबकि यह पुल बेलनी के तल्लानागपुर से भी जोडता है। इसके साथ ही इस पुल के ऊपर से दर्जन भर पेयजल योजनायें समेत दूर संचार लाईने भी गुजरती हैं। ऐसे में समय रहते इस पुल का जीर्णोद्धार नहीं किया गया तो यह पुल ध्वस्त हो जायेगा जिससे केदारघाटी और तत्लानागपुर पूरी तरह देश औऱ दुनिया से कट जायेगा!