ऋषिकेश: लीज अनुबंध खत्म होने के बाद भी परमार्थ निकेतन पिछले 51 सालों से चल रहा है। इसका खुलासा शनिवार को पैमाइश के बाद हुआ। मामले में हैलो उत्तराखंड न्यूज़ से बातचीत में लीज की अवधि को लेकर जिलाधिकारी पौड़ी धीरज गर्ब्याल ने कहा कि, राजाजी टाइगर रिजर्व से ही यह स्पष्ट होगा। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि, लीज के नवीनीकरण को लेकर प्रक्रिया चल रही है और केंद्र को भी यह भेजा गया है। साथ ही लीज की अवधि को लेकर उन्होंने कहा इसमें जिला प्रशासन की कोई भूमिका नहीं है। राजाजी टाइगर रिजर्व के साथ आश्रम जमीन की लीज अवधि नवीनीकरण की प्रक्रिया चल रही है। इसके आलावा मामला कोर्ट में विचाराधीन होने के कारण उन्होंने अधिक कुछ कहने में असमर्थता जताई।
वहीँ मामले में हैलो उत्तराखंड न्यूज़ से बातचीत में राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक पीके पात्रो ने कहा कि, रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 1968 में परमार्थ निकेतन के साथ वन विभाग का लीज अनुबंध समाप्त हो गया था। साथ ही वर्ष 1980 में वन अधिनियम के तहत लीज पर देने का प्रावधान खत्म कर दिया गया। कोर्ट के निर्देशानुसार डीएम पौड़ी इसकी जाँच कर रहे हैं। राजस्व, सिंचाई और वन विभाग ने परमार्थ निकेतन स्थित गंगा घाट की पैमाइश की।
ऐसे में अब मामला चाहे जो भी हो लेकिन शुरुआती जांच में यह साफ़ है कि, परमार्थ निकेतन का सरकारी भूमी पर कब्ज़ा है। लेकिन हैरानी की बात है कि, इतने साल बीत जाने के बाद भी यह कब्ज़ा रहा है। बावजूद इसके अब भी यहां हुए अवैध कब्जे को खाली करवाने के मामले में परमार्थ निकेतन के प्रभाव को देखते हुए अफसरों में भी कार्रवाई को लेकर संशय बना हुआ है।
बता दें कि, हरिद्वार निवासी अधिवक्ता विवेक शुक्ला ने इस मामले में जनहित याचिका दायर कर कहा कि ऋषिकेश में स्वर्गाश्रम स्थित परमार्थ निकेतन ने गंगा किनारे सरकारी जमीन पर कब्जा किया है। साथ ही गंगा में पुल बनाकर नदी में एक मूर्ति भी बना दी है। इतना ही नहीं, परमार्थ आश्रम ने यहां पर व्यावसायिक निर्माण भी किया है। किराया भी आश्रम वसूल रहा है। इन अवैध निर्माणों से होने वाला कूड़ा गंगा नदी में डाला जा रहा है।
जिसके बाद कोर्ट ने डीएम पौड़ी से कहा कि वह आश्रम में जाकर मौके का मुआयना करें। साथ ही हाईकोर्ट ने पौड़ी डीएम को सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे के मामले में 16 दिसंबर को रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।