कश्मीर: 23 मार्च 2003 का दिन कश्मीरी पंडितों के इतिहास का एक काला दिन है। ऐसा दिन, जब आतंकियों ने खुलेआम 24 कश्मीरी पंडितों को घर से बाहर निकालकर गोलियों से भून डाला था। उस नसंहार के बाद बचे हुए कश्मीरी पंडितों ने भी कश्मीर को छोड़ना शुरू कर दिया। हैरानी की बात यह है कि तब से लेकर आज तक इस नरसंहार में एक भी व्यक्ति को सजा नहीं हुई।
कश्मीर के इतिहास में 23 मार्च 2003 का दिन काले दिन के रूप में दर्ज है। इस नरसंहार को कश्मीर के सबसे बड़े नरसंहारों में से एक माना जाता है। लश्क-रे-त्येबा के आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों को पहले घरों से बाहर निकला, फिर लाइन में खड़ा किया और उनको मुस्लमान बनने के लिए कहा। आतंकियों का कहना था कि या तो मुस्लमान बन जाओ या फिर जान गवांओ।
कश्मीरी पंडितों ने मुस्लमान बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया, जिसके बाद बेरहम आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों को लाइन में खड़ाकर गोलियों से भून डाला। तब से लेकर आज तक कश्मीरी पंडित न्याय की उम्मीद लगाए हुए हैं, लेकिन आज तक उनको मायूसी ही हाथ लगी है। इस पूरे नसंहार को बाद में गुजरात दंगों से जोड़कर भी देखा गया। माना गया कि गुजरात दंगों का बदला देने के लिए इसे अंजाम दिया गया था।