देहरादून : 2019 लोकसभा चुनाव की रणभेरी अभी भले ही नहीं बजी हो, लेकिन चुनावी युद्ध की तैयारी शुरू हो चुकी है। विरोधी सेनाएं युद्धाभ्यास में जुटी हुई हैं। अपने-अपने तरकश के हर हथियार को आजमाने से पहले परखा जा रहा है। पुराने और नए हथियारों की तुलना की जा रही है। देखा जा रहा है कि जनता की कसौटी पर कौन खरा उतरेगा। कौन ऐसा होगा, जो सीधे जनता के दिलों पर सटीक निशाना साध पाएगा। उत्तराखंड में भी रण में उतरने से पहले युद्धाभ्यास शुरू हो चुका है।
टिहरी से शुरू करते हैं। कांग्रेस को यहां ताकतवर योद्धा की तलाश है। अरग कुछ ऊंची-नीच नहीं हुई तो भाजपा के पास यहां पहले से ही महायोद्धा नहीं, बल्कि महारानी हैं और ताज भी उन्हीं के सिर पर है। कांग्रेस इस कोशिश में है कि महारानी को टक्कर देने वाला योद्धा मैदान में उतारा जाए।
पौड़ी सीट पर सभी की नजरें हैं। यहां भी कांग्रेस अपने योद्धाओं की तलाश और परख करने में जुटी हुई है। कांग्रेस किसी वजनदार, नामी और महाप्रतापी योद्धा की खोज कर रही है। पता नहीं खोज भारी पर समाप्त होती है फिर हल्के पर ही सिमट कर रह जाती है। भाजपा में योद्धाओं की भरमार है। एक के बाद एक योद्धा खम ठोकता नजर आ रहा है। सेना के असली जवान भी ताल ठोक रहे हैं। भाजपा योद्धा ज्यादा मिलने से परेशान है।
हरिद्वार सीट पर भाजपा और कांग्रेस ने अपनी रणनीति को गुप्त रखा है। हालांकि कांग्रेस के महारथी हरीश रावत ने यहां पांव पसारने के प्रसाय किए थे, लेकिन उनको उन्हीं के सिपाही चुनौती देते नजर आए। भाजपा के वर्तमान सांसद खुद को निशंक मान रहे हैं, लेकिन अंत में दांव पलट भी सकता है। बहरहाल दोनों ही ओर से योद्धाओं की पूरी परख की जा रही है।
नैनीताल सीट पर भी महायोद्धा हरीश रावत के ही चर्चें आम हैं। हालांकि उनको बूढ़ा शेर कहकर उनके पियादे अप्रत्यक्ष रूप से चुनौती भी दे चुके हैं। भाजपा यहां भी पौड़ी की तरह ही संकट में है। भगत दा शायद रण में आने से पहले ही हथियार डाल दें, लेकिन उनके डाले हथियारों को उठाने के लिए यशपाल आर्य और बंशीधर भगत ने ऐलान कर दिया है।
अल्मोड़ा में कांग्रेस के प्रदीम टम्टा को मजबूत योद्धा के रूप मैदान में झोंक सकती है। भाजपा के अजय टम्टा की विजय की गारंटी का भी आंकलन किया जा रहा है। वो पहले ही अपने भाग्य का फैसला महाशक्तियों के हवाले छोड़ चुके हैं। उनकी कुर्सी को हिलाने के लिए भाजपा सरकार में मंत्री रेखा ने दावेदारी पेश कर एक लकीर खींच दी है।
अब देखना होगा कि युद्ध का विधिवत ऐलान होने से पहले योद्धाओं को एलान होता है या नहीं। कौन किस पर दांव लगाता है, इस बात का फैसला दोनों ही दलों के लिए आसान तो बिल्कुल नहीं होने वाला। नेता हो या अभिनेता। सफल वही होता है, जो जनता के दिलों पर राज कर सकता हो। देखना होगा कि चुनावी मंच पर उतरने से पहले की कलाकारी में कौन पास होकर असल युद्ध के मंच पर अपनी अदाकारी का मौका कौन-कौन हासिल कर पाएगा।