देहरादून
मंयक ध्यानी
मुख्यमंत्री नशा मुक्ति अभियान को पुलिस प्रशासन जमीन पर उतारने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है। महीनें में लगभग एक बार पुलिस प्रशासन द्वारा लोगों को थाने में बुलवाकर नशे को समाज से खत्म करने के लिए काउंसलिंग की जा रही है। शहर के लगभग सभी थानों के साथ साथ महिला चीता पुलिस भी सड़को में लोगों को जागरुक कर रही है।
एक तरफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा शराब के ठेकों को शिफ्टिंग के आदेश के बाद जिस तरीके से राज्य सरकार ने राज्य हाईवे को जिला रोड़ बना दिया है और वहीं दूसरी ओर थानों के द्वारा नशा मुक्ति को लेकर जिस तरह से लोगों को जागरुक किया जा रहा है। इससे ये संकेत साफ जाते हैं कि सरकार शराब से आ रहे राजस्व को भी गवाना नहीं चाहती और प्रदेश को शराब मुक्त बनाने की कोशिश भी कर रही है।
सरकार के इन दोहरे मापदंडों को अब जनता समझ नहीं पा रही है। जनता चाहती है कि सरकार शराब को लेकर अपनी नीयत स्पष्ट करे कि वो क्या चाहती है। अगर वो प्रदेश को शराब मुक्त बनाना चाहती है तो फिर शराब को बैन क्यों नहीं करती और अगर शराब को बैन नहीं कर सकती तो फिर ऐसे अभियान चलाने का क्या फायदा?