देहरादून: प्रदेश में उरेडा द्वारा करोड़ों रूपये के घोटाले मामले में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। जबकि, जांच में करोड़ों की अनियमितता सामने भी आ चुकी है। साथ ही जाँच अधिकारी द्वारा इसकी रिपोर्ट भी शासन को दी जा चुकी है। इसके आलावा सचिव ऊर्जा राधिका झा द्वारा निदेशक उरेडा को भी अनियमितता के संबंध में भी कार्यवाही करने के लिए आदेशित किया जा चुका है। बावजूद इसके अभी तक जिम्मेदार अधिकारीयों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं की गई।
दरअसल, केंद्र सरकार ने सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन के साथ रोजगार और पहाड़ से पलायन रोकने के लिए 3000 मेगावाट ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप सोलर पावर प्लांट योजना उत्तराखंड को दी थी। इस योजना में केंद्र सरकार की तरफ से लाभार्थी को 70 फीसदी सब्सिडी देने का प्रावधान भी था।
इस तरह उरेडा ने क़रीब 80 से 90 करोड़ रुपए का भुगतान आवंटित भी कर दिया। सब्सिडी की धनराशि का लाभ उरेडा के अधिकारियों और रिश्तेदार के साथ अधिकारीयों के मित्रों को भी मिला। अधिकारियों द्वारा सब्सिडी की बंदरबांट अपने करीबियों को प्लांट का आवंटन कर किया गया।
इस योजना में एमएनआरई द्वारा तय क़ीमत के हिसाब से सात करोड़ प्रति मेगावाट की दर से क़रीब 44 मेगावाट के प्लांट घरों की छतों पर लगाने की संस्तुति की गयी थी, जिससे उत्पादित बिजली को यूपीसीएल 25 साल तक खरीदता। इस परियोजना के तहत आम लोगों को रोजगार भी मिलता।
हैरानी की बात ये रही कि, जिस दिन ये स्कीम लॉंच हुई एक घंटे के अंदर सभी आवेदन उरेडा में जमा हो गए। इन आवेदकों में ज्यादातर उरेडा के अधिकारियों के रिश्तेदार और दोस्त शामिल थे। हद तो तब हुई जब एक अधिकारी ने अपनी पत्नी के नाम पर ही प्रोजेक्ट को आवंटित करा दिया। इतना ही नहीं एक ही प्लांट को तीन बार अलग-अलग दिशाओं के गेट दिखा कर तीन सब्सिडी भी रिलीज़ करा लीं गईं, जबकि सब्सिडी की 50 फीसद रकम में इन अधिकारियों ने अपने दोस्त और रिश्तेदारों को 100 परसेंट सब्सिडी रिलीज़ कर दी। लेकिन अन्य आवंटियों को अभी तक सब्सिडी ही नहीं मिली।
वहीं गाइड-लाइन में स्पष्ट है कि सब्सिडी घरों की छतों और उससे लगी हुई ज़मीन पर ही दी जानी थी। लेकिन वो कृषि भूमि पर लगवा दिए गए। बाद में जब ग़लती पकड़ी गई तो अपनी ग़लती छुपाने के लिए कृषि भूमि (Land Use) ही बदलवा दी गयी और यह काम भी प्रशासन के उस समय के एक बड़े अधिकारी के इशारे पर हुआ था। इन आला अधिकारी ने सभी डीएम और एसडीएम को पत्र लिख कर कृषि भूमि पर लगे इन प्लांटों का लैंड यूज़ बदलवाने का आदेश पारित किया।
जब इस अनियमितता को लेकर कुछ लोगों ने भारत सरकार की “मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एण्ड रिन्यूवल इनर्जी” (एमएनआरई) से शिकायत की तो एमएनआरई ने इस मामले की जांच के लिए एक टीम गठित की। टीम एमएनआरई के एक अफसर, सोलर इनर्जी ऑफ इंडिया के ज्वाइंट डायरेक्टर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोलर इनर्जी के डायरेक्टर के साथ एक ज्वाइंट टीम ने रेंडमली 11 प्लांटों की अचानक जांच की। जांच में 3.85 मेगावाट के 10 प्लांट ऐसे पाए गए जिन्हें सब्सिडी नहीं सकती थी। इसके बाद भी उन्हें 100 प्रतिशत सब्सिडी रिलीज़ कर दी गई। जांच में अनियमितता पाए जाने के बाद एमएनआरई ने सब्सिडी वापस करने का उरेडा को आदेश दिया। 3.85 मेगावाट का क़रीब 18 करोड़ 86 लाख 50 हज़ार रुपए बनती है, लेकिन ये सब्सिडी अभी तक वापस नहीं की गई।