देश की आजादी में अखबार से शुरू हुई मिशन पत्रकारिता का स्वरूप आज 360 डिग्री बदल गया है। अब कोई भी घटना सेकेंड़ो में आप तक पहुंचाई जा सकती है..अब किसी भी घोटाले को उजागर करने के लिए परंपरागत मीडिया की कृपा की जरूरत नहीं। क्योकिं अब वेब मीडिया पत्रकारिता की जड़ में खुसकर खबरों को निकाल रहा है औऱ जनता तक पहुंचा रहा है। हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आज यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि ऑनलाइन पत्रकारिता अब धिरे धिरे विश्वसनीय औऱ परिपक्व हो रही है।
इसी का बड़ा उदाहरण है कि आज हम ( हैलो उत्तराखंड न्यूज ) अपने मात्र ढ़ाई महीनों के बाल्य काल में ही लगभग पचास हजार विजिटर का आकंडा पार करने जा रहे हैं। कहा जाता है कि पत्रकार को स्वभाव से आलोचक होना चाहिए लेकिन आज आलोचक कम औऱ प्रशंसक ज्याद दिख रहे हैं। फंडिंग की मजबूरी भी कई बार आलोचक को प्रशंसक बना देती है। इस मजबूरी से इतर हम लगातार आलोचक बने हुए हैं.. आलोचक हर उस नीती के जो गरीबों को कम और अमीरों को ज्यादा फायदा पहुंचाती है, आलोचक हर उस घटना के जिससे आम आदमी पर नकारत्मक प्रभाव पड़ता है..औऱ आलोचक हर उस बात के जो हमारी पत्रकारिता के मिशन के खिलाफ हो।
हम हर दिन समाज के लिए, किसान के लिए, जवान के लिए आम इंसान के लिए खुद के मान सम्मान औऱ जान तक को दाव में लगाते है। हालांकि कई बार पत्रकार कम आय के चलते या सत्ता भय से पत्रकारिता को अलविदा कह देते हैं लेकिन इस सब के बावजूद पत्रकारित्रा में जूनूनियत के साथ आने वालों की आज भी कोई कमी नहीं है।
कुछ लोग जो अब पत्रकारिता को चाटुकारिता कहने लगे हैं उनकी इस बात को सिरे से झूठलाया तो नहीं जा सकता लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि लोगों का विश्वास आज भी मीडिया पर बना हुआ है जिसके कारण मीडिया संस्थान कई गुना रफ्तार से बढ़ रहे है। जिससे लाखों छोटे बड़े पत्रकारों की रोजी रोटी चल रही है और परिवार पल रहा है।
आज हिंदी पत्रकारिता के ऐसे समय में जब पत्रकारित्रा ने मीडिया कल्चर का रूप ले लिया है………जहां विज्ञापन का प्रेशर है…खबरों को मोड़ने का दबाव है…आय से नाराजगी है औऱ भविष्य की चिंता है।
ऐसे माहौल में भी निर्भीक पत्रकारिता करने वाले सभी पत्रकारों की पत्रकारिता को सलाम है।
हम इंजीनियर हैं जो अपनी खबरों से समाज के जनमानस की सोच का निर्माण करते हैं, हम डॉक्टर हैं जो समाज के बिगड़े हालात पर काम करते हैं, हम वकील हैं जो आम आदमी के हक के लिए कई बार सरकार से लड़ते है, पुलिस की ही तरह कई बार समाज के लॉ एंड ऑडर के लिए काम करते हैं औऱ कई बार यह सब करते करते सीमा पर जवान की तरह शहीद भी हो जाते हैं। बस जिस्म पर तिरंगा नहीं होता……………..