प्रकाश रांगड़, देेहरादूनः उत्तराखंड में बेखौफ अफसरशाही हावी होती दिखाई दे रही है। जीरो टाॅलरेंस की नीति का नारा लेकर चल रही डबल इंजन की भाजपानीत त्रिवेंद्र रावत सरकार इस नक्शे कदम पर चलने में अब तक नाकाम ही साबित हो रही है।
इसका ताजा उदाहरण मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना का हाल ही में बंद हो जाना रहा। हालांकि सरकार ने बैकफुट पर आकर प्रदेश की जनता से कहा है कि योजना बंद नहीं होगी, लेकिन योजना किस कारण और क्यों बंद हुई इसका माकूल जवाब अफसर व सरकार नहीं दे पा रही, लेकिन हकीकत यही है कि इसके लिए इससे जुड़े अफसर ही कसूरवार हैं।
मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए बजाज आलियांज से सरकार का अनुबंध हुआ था जो कि जुलाई में ही समाप्त हो गया था। इसके बाद कंपनी ने योजना का अनुबंध रिन्यूवल करवाने के लिए सरकार को तीन महीने का अतिरिक्त एक्सटेंशन दिया जो कि अक्टूबर में ही खत्म हो गया, लेकिन इसके बाद भी अफसरों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया या फिर सरकार ने इस योजना को लेकर जरा भी संवेदनशीलता नहीं दिखाई और इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य स्थापना दिवस पर मजबूरी में संबंधित कंपनी को योजना से जुड़ी सेवाएं बंद करनी पड़ी। योजना बंद होते ही सरकार ने कंपनी के खिलाफ शोर मचाना शुरू कर दिया, लेकिन अपनी गलती का जरा भी अहसास नहीं।
योजना बंद होते ही हैलो उत्तराखंड न्यूज ने बजाज आलियांज कंपनी से योजना के सिलसिले में बातचीत की। कंपनी के अधिकारियों का साफतौर पर कहना था कि जुलाई में अनुबंध खत्म होने के बाद राज्य सरकार को तीन महीने का अतिरिक्त एक्सटेंशन दिया गया इसके बावजूद कंपनी से रिन्यूवल के लिए एप्रोच नहीं की गई। सूत्रों के अनुसार राज्य के ब्यूरोक्रेट्स मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना की जिम्मेदारी किसी और कंपनी को देना चाहते थे। शायद यही वजह थी कि कंपनी से दोबारा योजना के रिन्यूवल को अनुबंध नहीं किया गया। तो सवाल यही कि क्या इससे जुड़े ब्यूरोक्रेट्स अपनी किसी चहेती कंपनी से योजना का अनुबंध करना चाहते थे।
अगर यह सब गलत भी मान लिया जाए तो अफसरों ने क्यों इस बात को दबाए रखा। क्या तीन महीने के एक्सटेंशन के बाद भी इससे जुड़े अफसर योजना की जरूरी औपचारिकता पूरी कर पाने में असमर्थ रहे। अफसरों से इस बारे में जानने की तमाम कोशिश की गई लेकिन कोई भी अधिकारी जवाब देने को राजी नहीं है। बल्कि जिम्मेदारी से बचने का प्रयास किया जा रहा है। हर कोई यही कहता है कि इस बारे में वह कुछ नहीं कह सकते।
प्रबंधक निदेशक स्वास्थ्य डा. अर्चना श्रीवास्तव तो इस सवाल का जवाब न देने की मंशा से पिछले तीन दिनों से मीटिंग में ही व्यस्त है और फोन तक उठाने को तैयार नहीं। योजना को लेकर माकूल जवाबदेही को डा. अर्चना का मुंह अभी तक नहीं खुला। विभाग के एक उप सचिव ने फोन उठाया भी तो उन्होंने उपरी स्तर के अधिकारियों से जवाब मांगने को कहा। अब सरकार ही तय करे कि आखिर कौन इसका जिम्मेदार है, जब न अफसर और न खुद सरकार इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार है।
योजना के बंद होने पर प्रदेश के 13 लाख गरीब परिवारों को बड़ा झटका लगा। पूरे राज्य में इस योजना के तहत 95 सरकारी और 88 निजी अस्पताल सरकार से इम्पैनल्ड थे, यहां लोग अपना इलाज मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना से करवा रहे थे। अफसरशाही के ढीलेपन के कारण सीधे-सीधे प्रदेश की जनता को रोने के लिए मजबूर होना पड़ा।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने योजना बंद होने पर कहा था कि जो भी इसका दोषी होगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, लेकिन सरकार के ये बयानात कार्रवाई के संबंध में थोथी बकवास मालूम पड़ती है।