उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा गंगा और यमना को जीवित मानव का दर्जा देने के आदेश पर आज सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को अव्यवहारिक बताया है। राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि गंगा 4 राज्यों से बहती है इसलिए उत्तराखंड हाई कोर्ट ऐसा आदेश नहीं दे सकता। कोर्ट ने हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता मो. सलीम से जवाब भी मांगा है।
मालूम हो कि बीती 20 मार्च को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में देश की दो पवित्र नदियों गंगा और यमुना को ‘जीवित मानव का दर्जा’ देने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की एक खंडपीठ ने अपने आदेश में दोनों पवित्र नदियों गंगा और यमुना के साथ एक ‘जीवित मानव’ की तरह व्यवहार किये जाने का आदेश दिया। अधिवक्ता एमसी पंत की दलीलों से सहमति व्यक्त करते हुए अदालत ने इस संबंध में न्यूजीलैंड की वानकुई नदी का भी उदाहरण दिया था जिसे इस तरह का दर्जा दिया गया है।
साथ ही अनुच्छेद 365 के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा जिम्मेदारियों का पालन नहीं किया गया तो ऐसे में राज्य सरकार को हाई कोर्ट भंग भी कर सकता है।
बता दें कि गंगा और यमुना को एक जीवित मानव की तरह का कानूनी दर्जा देते हुए अदालत ने नमामि गंगे मिशन के निदेशक, उत्तराखंड के मुख्य सचिव और उत्तराखंड के महाधिवक्ता को नदियों के कानूनी अभिभावक होने के निर्देश दिये थे।