देहरादूनः इस साल उत्तराखंड राज्य अपनी बाल्वस्था को छोड़ युवा अवस्था में दस्तक देने जा रहा है। यानि कि अब उत्तराखंड राज्य जवान हो चला है। जैसे 18 साल में कदम रखते ही एक बच्चा युवा कहलाने लगता है, वैसे ही अब उत्तराखंड भी युवा कहलाया जायेगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस प्रकार एक बच्चा युवा अवस्था में आकर अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगता है तो क्या वैसे ही उत्तराखंड राज्य व यहां की सरकारें अपनी जिम्मेदारियों को अब सयाने तरीके से लेंगीं कि नहीं?
जिस तरह से प्रदेश व राष्ट्र की बड़ी पार्टियां अपनी बचकानी हरकतों से अभी भी नहीं उबर पा रही हैं, उससे यही लगता है कि राज्य व यहां उत्तराखंड की बागडोर संभाले पार्टियां अभी बाल्यावस्था में ही हैं।
देखा जाए तो सरकार ने भी राज्य के 18वें साल में दस्तक देने को लेकर काफी अच्छी सोच रखी और रैबार कार्यक्रम के तहत अपनी योजनाओं को पटरी पर लाने के लिए एक कदम आगे बढ़ाया। लेकिन राज्य और राज्य के लोगों के लिए अच्छा होता यदि उत्तराखंड सरकार द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम और रणनीति को केवल बंद कमरे में नहीं बल्कि खुले में की जाती।
दुख और चौंकाने वाली बात तो यह भी है कि यह कार्यक्रम केवल बीजेपी और उसके कुछ नजदीकी लोगों तक ही सीमित रहा। जिसपर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम ने भी दुख जताया और कहा कि राज्य स्थापना दिवस पर खुली चर्चा होनी चाहिए, लेकिन बंद कमरे में चुनिंदा लोगों के साथ विचार-विमर्श करने की बात गले से नहीं उतरती। हालांकि इस पर मुख्यमंत्री की ओर से जवाब मिला कि जहां उनको बुलाया जाता है वहां तो वो आते नहीं और जहां तक अकेले कमरे में चर्चा की बात है तो प्रोग्राम टॉप ब्यूरोक्रेट्स का है, जो उत्तराखंड से संबंधित रहे हैं। हमने अपनी क्षमता के अनुसार ही विशेषज्ञों को बुलाया।
सोचने वाली बात यह है कि जहां सरकारों को इस अवसर पर एक जुट होकर राज्य के विकास के लिए आगे आना चाहिए था, तो वहीं दोनों ही पार्टियां आपस में मनमुटाव कर बैठी हैं, जिससे साफ हो जाता है कि राज्य के विकास की जिम्मेदारियां ली हुई ये पार्टियां अपनी बचकानी हरकतों से नहीं उभर पा रही हैं। जिसका परिणाम क्या होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।