प्रकाश रांगड़, देहरादूनः केदारनाथ में लगा पुनर्निर्माण कार्यों के शिलापट्ट में क्षेत्रीय सांसद, पर्यटन मंत्री व स्थानीय विधायक का नाम गायब होने के बाद इसको लेकर सियासी हलकों में मचे बवाल के बीच पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का बयान सामने आया है।
केदारनाथ शिलापट्ट को लेकर चौतरफा राजनीतिक विरोध का सामना कर रही राज्य सरकार के इस असहज फैसले पर सतपाल महाराज ने अपनी बात रखते हुए कहा कि केदारनाथ शिलापट्ट पर मेरा नाम हो न हो, लेकिन सांसद का नाम अवश्य होना चाहिए था। महाराज के इस बयान के बाद सरकार सीधे तौर पर आलोचनाओं से घिर गई है। इसके साथ ही उन्होंने ‘हाथी के पैर में सबका पैर’ कहावत के जरिए डबल इंजन की सरकार की जीरो टॉलरेंस वाली नीति को भी गलत साबित करने का अपने कमान से तीर छोड़ डाला।
हालांकि महाराज ने हैलो उत्तराखंड न्यूज से बातचीत में ऐसा कहकर सीधे तौर पर अपनी नाराजगी का इजहार नहीं किया। उन्होंने कहा कि यह मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में आता है कि किसका नाम शिलापट्ट में होना चाहिए अथवा नहीं।
दरअसल, बीते 20 अक्टूबर को केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होने से एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबा केदार के दर पर थे। अपने इस दौरे पर पीएम मोदी ने विकास से जुड़ी विभिन्न योजनाओं का शिलान्यास कर नई केदारपुरी के पुनर्निर्माण संदेश दिया। तब योजनाओं के शिलान्यास का शिलापट्ट पर पर्यटन मंत्री व सांसद का नाम ही गायब होने से उत्तराखंड की राजनीति गर्मा गई थी। शिलापट्ट में सिर्फ पीएम, राज्यपाल, सीएम व राज्य मंत्री धन सिंह रावत का नाम अंकित है, लेकिन ऐसे में सवाल यह था धन सिंह रावत का नाम शिलापट्ट में कैसे आ गया और सांसद व पर्यटन मंत्री के नाम क्यों नहीं इसमें अंकित किए गए। जबकि यह पर्यटन क्षेत्र के अंतर्गत आता है और राजस्व अर्जित करने की जब बात आती है तो पर्यटन विभाग को आगे कर दिया जाता है।
सवाल उठा था कि राज्य मंत्री धन सिंह रावत न तो क्षेत्र के विधायक हैं और न ही सांसद। यहां तक कि क्षेत्र से उनका दूर तक का नाता नहीं है और जिस विभाग का वह आधा अधूरा दायित्व भी संभाल रहे हैं उसका भी केदारनाथ और यहां पर हो रहे कार्यों से कोई लेना देना नहीं है। न ही उनके विभागों से संबंधित कोई योजना केदार नगरी में संचालित हो रही है।
सूत्रों की मानें तो राज्य मंत्री धन सिंह रावत ने उत्तराखंड से लेकर भाजपा दिल्ली हाईकमान तक शिलापट्ट पर नाम गुदवाने को अपनी पूरी ताकत झोंकी थी और वह अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने में सफल भी साबित हुए। कुल मिलाकर शिलापट्टों को लेकर जो सियासत भाजपा के भीतर उबर कर सामने आई, उससे साफ हो गया कि संगठन के भीतर सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। अगर, चल रहा होता तो शिलापट्ट पर जारी आलोचना डबल इंजन की सरकार में सियासी तूफान का कारण नहीं बनती।
इसके साथ ही यह भी साफ हो गया कि पूरे देश में जहां भाजपा मोदी का राग अलाप रही है, वहीं उत्तराखंड भाजपा सरकार में विकास के मसले अहम नहीं बल्कि व्यक्तिगत स्वार्थ ज्यादा मायने रखते हैं।