मरीजों की जिंदगियों पर दांव लगा रही सरकार, कैसे लगेगी स्वास्थ्य सुविधाओं की नइया पार

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प्रदेश भर में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं से तो सभी वाकिफ़ हैं। न तो प्रदेश में प्रयाप्त मात्रा में डॉक्टर हैं और ना ही स्वास्थ्य सुविधाएं। लेकिन जो बची-कुची सुविधाएं हैं वो भी अपना दम तोड़ने को मजबूर हैं।

जी हां प्रदेश भर में स्वास्थ्य सेवाओं का जिम्मा उठाने वाली कम्पनी जीवीके 108 सेवा को प्रदेश सरकार ने 2008 से लेकर 2018 तक प्रदेश भर में स्वस्थ्य सुविधाओं का जिम्मा सौंपा है , लेकिन बावजूद इसके सरकारी कारनामों के कारण कम्पनी को ही सुविधाएँ मुहैया नहीं करवाई जा रही हैं। जिससे प्रदेश भर में जीवन देही आपातकालीन सेवा खुद ही बीमार नज़र आ रही है और   विभागीय सेवा अपना तोड़ने की कगार पर है। लेकिन इतने गंभीर मामले पर भी सरकार लोगों की जिंदगियों को दांव पर लगा रही है।

आपको बता दें कि प्रदेश भर में ये जीवीके की सेवाएं 2008 से दी गई। लेकिन ये सभी आपात्कालीन गाड़ियों इतनी ज्यादा चल गई हैं कि अब इन सेवाओं ने दम तोड़ना शुरू कर दिया है। भले ही इसके लिए विभाग ने सरकार को 2014 से लेकर अब तक कई बार अवगत करवाया लेकिन इतने गंभीर मुद्दे पर भी सरकार हीला- हवाली देते हुए खामोश बैठी हुई है।

बता दें कि इन्हीं 139 सेवाओं के कारण मरीजों को अस्पताल लाया और ले जाया जाता है। लेकिन यह सभी सेवाएं अब खस्ताहालत स्थिति में पहुंच चुकीं हैं। हालात यह हैं कि न तो इनको रिपेयर करवाने के लिए सरकार खर्चा वहन कर रही है और ना ही विभाग को और जीवन देही सेवाएं मुहैया करवा रही है।

हम आपको बता दें कि सरकार द्वारा विभाग को इस बात का हवाला देकर पैसा मुहैया नहीं करवाया जा रहा है कि जब तक विभाग टीडीएस का पैसा वापस नहीं ले लेता सरकार द्वारा कोई भी पैसा नहीं दिया जाएगा। ज्ञात हो कि विभाग का हर बार टीडीएस कटता है जो अब तक 12 करोड़ रूपया हो गया है। लेकिन जिस प्रकार सरकार मरीजों की जिन्दगियों के बारे में न सोचकर विभाग से पैसा लेने को कह रही है। उससे साफ हो जाता है कि सरकार को केवल हिसाब चाहिए, मरीजों की जिन्दगियों से उसे कोई सरोकार नहीं। क्योंकि यदि ऐसा कुछ होता तो 2014 में ही गाड़ियों को रिपेयरिंग करवा ली जाती या फिर नई गाड़ियाँ मुहैया करवाई जातीं। भले ही इस मामले में पूर्ववर्ती सरकार जिम्मेदार है लेकिन वर्तमान सरकार भी तो उसी के नक्शे कदमों पर चल रही है।

हालांकि हैलो उत्तराखंड से बात करते हुए जीवीके के हैड मनीष टिंकू ने अवगत कराया कि इस बाबत 2014 से ही प्रशासन को प्राथना पत्र लिखकर समय-समय पर अवगत करवाया जा रहा था। लेकिन तब से लेकर 2017 तक कोई भी सकारात्मक कार्य नहीं हुआ है और इसी प्रकार बस मरीजों की जिंदगियों पर दांव लगाया जा रहा है। वहीं उन्होंने बताया कि अब इस बार मीटिंग कर यह निर्धारित हुआ है कि प्रदेश को जल्द ही 33 नई गाड़ियां दी जायेंगी। जिनकी आने वाले समय में संख्या और बढ़ा दी जायेगी।

वहीँ डीजी हेल्थ ने बताया कि प्रदेश भर के लिए 62 नई आपातकालीन गाड़ियों को लाने की प्रक्रिया चल रही है , जल्द ही उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जाएगा ।

पूरे उत्तराखंड के जिलों में जीवीके द्वारा दी गई गाड़ियों की सूची

अल्मोड़ा – 13
बागेश्वर- 15
चमोली- 12,
चंपावत- 5
देहरादून- 17
हरिद्वार- 10
नैनीताल-14
पौड़ी- 17
पिथौरागढ़- 10
रूद्रप्रयाग-4
टिहरी- 13
उत्तरकाशी- 9
उधमसिंह नगर- 9

भले ही सरकार ने प्रदेश भर में 33 नई गाड़ियों को देने की बात कही हो लेकिन सवाल यह है कि आखिर प्रदेश सरकार आखिर क्यों मरीजों की जिंदगियों पर दावं खेल रही है? भला कैसे प्रदेश भर में इतनी कम संख्या में आपात्कालीन सेवाओं से मरीजों को उचित समय पर अस्पताल पहुंचाया जाएगा?

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