बदहाल शिक्षा व्यवस्था का एक और उदाहरण, विभाग व प्रशासन बना हुआ है गैरजिम्मेदार

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जोशीमठ: उत्तराखंड राज्य में शिक्षा स्थिति से तो सभी वाखिफ़ हैं, राज्य अपने स्थापना से लेकर आज तक प्रदेश वासियों को मूलभूत सुविधाएँ भी मुहैया नहीं करवा पाया है। हालात यह हैं कि जहाँ विद्यार्थी हैं वहां शिक्षकों का टोटा, जहाँ शिक्षक हैं वहां विद्यार्थी नहीं। लेकिन अभी तक ऐसे हालात केवल सरकारी स्कूलों के थे लेकिन ऐसे ही हालात अब महाविद्यालयों के भी नज़र आने लगे हैं।

इसका ताजा उदाहरण सीमान्त विकासखंड जोशीमठ का एकमात्र उच्च शिक्षण संस्थान “राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय जोशीमठ” है। जो अपने स्थापना वर्ष 1996 से लेकर आज तक अपनी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।

महाविद्यालय के हालात यह हैं कि विद्यालय परिसर आधे अधूरे निर्माण कार्य, प्रवक्ताओं की कमी, भूमि हस्तांतरण, आदि समस्याओं से जूझ रहा है। जबकि इस शिक्षण संस्थान में प्रखंड के दूर-दराज के लगभग 58 ग्राम सभाओं और जोशीमठ नगर क्षेत्र की छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण करने आते है।

हैलो उत्तराखंड से बात करते हुए प्राचार्य ने इस  बात पर सहमति जताते हुए बताया कि विज्ञान विषयों के प्रवक्ताओं की नियुक्ति करीब जुलाई से महाविद्यालय में नहीं हुई है। और जहाँ तक भूमि हस्तांतरण की बात है उसके लिए हमें शासनादेश जारी हो गया है। लेकिन अभी भूमि मिलने की प्रक्रिया में एक माह का समय लगेगा।

भले ही जहाँ भूमि हस्तांतरण की बात है वह एक माह बाद उपलब्ध हो जाएगी लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जुलाई माह से पीसीएम के शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई है। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन विद्यार्थियों का भविष्य क्या होगा?

शिक्षण संस्थान का बुनियादी समस्याओं से जूझना क्षेत्र के नौनिहालों के साथ खिलवाड़ है। लेकिन हद तो तब हो गई जब  वर्ष 2003-2004 में सरकार द्वारा महाविद्यालय के लिए पुस्तकालय भवन, प्रशासनिक भवन समेत मल्टी पर्पस भवन के निर्माण के लिए स्वीकृति दी और इसके लिए 1.34 करोड़ रुपये धनराशि भी जारी कर दी थी, जिसका जिम्मा “उत्तर प्रदेश निर्माण निगम की श्रीनगर इकाई को ” को दिया गया था। लेकिन पूरे 14-15 वर्ष का समय बीत गया है। पर ये भवन आज तक पूर्ण नहीं हो पाए हैं।

जब हैलो उत्तराखंड ने उत्तर प्रदेश निर्माण निगम के जीएम से कार्यप्रणाली में हो रही देरी के कारण को जानना चाहा तो उन्होंने निर्माण कार्य उत्तर प्रदेश विभाग के पास न होने का हवाला दिया। 

जिस प्रकार यूपी निर्माण निगम के जीएम ने मामले से ही अपना पलड़ा झाड दिया उससे साफ़ हो जाता है कि कर्यदाई संस्था अपनी जिम्मेदारियों के प्रति कितनी लापरवाह है। लेकिन इससे यह भी साफ़ हो गया है कि हमारी राज्य सरकार और प्रशासन अपने इन देश के भविष्यों के प्रति कितनी सजग है। जिससे कार्यदायी संस्था और सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल-ए-निशां लगना लाज़मी है।

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