उत्तराखंड फिल्म जगत के हालातों से तो सभी वाकिफ हैं। प्रदेश भर में उत्तराखंडी फिल्म जगत के निर्माता व कलाकारों की आर्थिक स्थिति बेहद ही कमजोर है और ऐसे में प्रदेश सरकार इनके प्रति कोई सकारात्मक रूख नहीं अपना रही है। राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंडी फिल्म जगत के लोगों ने प्रदेश की फिल्म नीति के लिए आवाज उठाई और वो आवाज 16 सालों बाद भले ही सरकार के कानों में गूंजी और नीति बनी भी, लेकिन नीति के अंतर्गत दी गई जिम्मेदारियां और कार्य अभी तक धरातल पर नहीं दिखे। अब इन सबके बीच प्रदेश सराकर व पर्यटन विभाग ने प्रदेश भर के फिल्म निर्माताओं के लिए एक छोटी सी पहल तो की, लेकिन उस पहल में भी उत्तराखंडी निर्माताओं का विशेष ध्यान में नहीं रखा गया है।
दरअसल बीते दिनों पर्यटन विभाग ने एक पत्र जारी कर निर्देश दिया कि प्रदेश भर में जो भी शूटिंग के दौरान आवासीय सुविधा गढ़वाल व कुमाऊँ मण्डल विकास निगम द्वारा लेगा उसे 50 प्रतिशत तक की छूट दी जाएगी।
उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद् ने राज्य में फिल्म पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए तय किया कि यदि कोई भी फिल्म जगत जैसे कि बॉलीबुड, हॉलीवुड, या कोई भी संस्था राज्य भर में शूटिंग के दौरान गढ़वाल व् कुमाऊँ मण्डल विकास निगम में ठहरता है तो उनको गढ़वाल व कुमाऊँ विकास निगम 50 प्रतिशत की छूट देगा।
जब हैलो उत्तराखंड की टीम ने प्रसिद्ध उत्तराखंड फिल्म टेलीविजन एण्ड रेडियो एसोसिएश्न के संस्थापक अध्यक्ष प्रदीप भण्डारी से इस बाबत बात की तो उनका कहना है कि वे इस बात से खुश है कि पर्यटन विभाग ने इस ओर ध्यान दिया। इससे उत्तराखंडी फिल्म निर्माताओं व कलाकारों को फायदा होगा । लेकिन उनका कहना है कि यदि यह छूट केवल गढ़वाली जगत के निर्माताओं व कलाकारों के लिए होता तो अच्छा था। क्यूंकि बाहरी जगहों से आने वाले निर्माताओं के पास प्रयाप्त मात्रा में बजट होता है। जिससे उत्तराखंड सरकार व उत्तराखंड पर्यटन विभाग को राजस्व मिल सकता था।लेकिन उन्होंने इसका आधा जरिया खत्म ही कर दिया।
उनका कहना है कि पर्यटन विभाग ने बाहरी कलाकारों और उत्तराखंडी कलाकारों को एक ही श्रेणी में रखा। जिससे उत्तराखंडी फिल्म जगत को केवल उतना ही फायदा मिलेगा जितना कि बाहरी निर्माताओं को। जिससे उत्तराखंड फिल्म जगत को कम और बाहरी निर्माताओं को ज्यादा फायदा मिलेगा और सरकार को राजस्व भी प्राप्त नहीं हो पाएगा।
देखा जाए तो एक तरफ उत्तराखंड सरकार व पर्यटन विभाग ने उत्तराखंड निर्माताओं को एक हाथ से सौगात तो दी लेकिन दूसरे हाथों से राजस्व प्राप्त करने का अवसर भी खो दिया है। ऐसे में तो उत्तराखंड ना ही अपने निर्माताओं को खुश रख पाएगा और ना ही राजस्व कमा पाएगा। ऐसे में कहा जा सकता है कि पर्यटन विभाग ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है!