केदारनाथ विकास प्राधिकरण को लेकर तीर्थ पुरोहित समाज का गुस्सा थमता नजर नहीं आ रहा है। दिनों-दिन बढ़ रहे इस गुस्से के पीछे का कारण तीर्थ पुरोहितों को विश्वास में लिए बगैर ही के0डी0ए को लागू करना है। इसके अलावा 2013 में आई आपदा के चार साल गुजर जाने के बावजूद भी सरकार स्थानीय जनजीवन को पटरी में लाने में कायमयाब नहीं रही हैं।
हैलो उत्तराखंड़ से बात करने हुए तीर्थ पुरोहित केदारसभा अध्यक्ष विनोद शुक्ला ने कहा कि पहले सरकार ईमानदारी से केदारनाथ के विकास के लिए आए हुए करोड़ों रूपये को विकास कार्य में लगाए और अगर सरकार की मंशा सच में ही विकास करने की होती ताे सरकार नगर पंचायत और जिला पंचायत के माध्यम से माध्यम से भी विकास कार्य हो सकता है लेकीन सरकार प्राधिकरण बना कर मोटा पैसा खाना और बड़ी-बड़ी कंपनियों को खिलाना चाहती है।
केदारसभा अध्यक्ष विनोद शुक्ला के मुताबिक प्राधिकरण बनने से स्थानीय लोगो का रोजगार भी प्रभावित होगा। डीएम-एसडीम के माध्यम से होने वाले विकास कार्यों में स्थानीय मजदुरों को रोजगार मिलता था लेकिन अब सब उल्टा होगा।
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि विकास के नाम पर तीर्थो की मर्यादा को खंड-खंड करने पर प्रदेश सरकार तुली है। अनादिकाल से जो व्यवस्थाएं चली आ रही हैं उनको बदलकर जिंदल जैसे बड़े ग्रुप को फायदा पहुचाने की चाल चली जा रही है।
केदारसभा अध्यक्ष ने साफ तौर पर कहा है अगर सरकार अपने प्राधिकरण के फैसले को वापस नहीं लेती है तो उन्हें उग्र विरोध का सामना करना पड़ेगा। जिस राज्य में पिछले 9 प्राधिकरण केवल सफ़ेद हाथी के दात साबित हो रहे है ऐसे में एक और प्राधिकरण का गठन सरासर पैसों का वारा-न्यारा करने के लिए हो रहा है।
केदारनाथ विकास प्राधिकरण लागू होने से जहाँ तीर्थ पुरोहितों और स्थानीय लोगों के हक-हकूक प्रभावित होंगे वही छोटे से छोटे विकास कार्य के लिए भी प्राधिकरण से स्वीकृति लेनी होगी जो अपने-आप में परेशानी का सबब है।