पहचान खोने जा रहा देवताल मंदिर, क्या होगी पुनस्थापना?

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पिथौरागढ़: एक तरफ जहाँ पंच्वेश्वर बाँध निर्माण पर केंद्र से सहमति मिल गई है वहीँ इस बाँध के बनने से भारत-नेपाल सीमा पर स्थित उत्तराखंड के 134 गाँव प्रभावित होंगें, जिसमें पिथौरागढ़ के 87, चम्पावत  के 26 और अल्मोड़ा के 21 गाँव शामिल हैं।

जैसा कि विधित है कि उत्तराखंड देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है, या यूँ कहें कि विश्व भर में से भारत को ही सौभाग्य मिला है कि भारत देश में ही सबसे ज्यादा देवताओं का वास है। जिसमें उत्तराखंड राज्य का नाम पहला  है। लेकिन यहाँ धीरे-धीरे मंदिर व् देवता अपनी पहचान खोने को मजबूर हैं।

ऐसा ही एक मंदिर है आस्था के प्रतीक माने जाने वाले देवताल मंदिर। यह मंदिर अपना अस्तित्व खोने को विवश है। क्यूंकि भारत-नेपाल सीमा पर बनने वाले पंच्वेश्वर बाँध निर्माण के बाद यह मंदिर भी डूब क्षेत्र में आ जायेगा। वहीँ इस मंदिर पर आस्था रखने वाले लोगों ने मंदिर की पुनस्थापना की मांग को तेज कर दिया है।

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बता दें कि देवताल मंदिर में हर वर्ष देश भर से भक्त यहाँ पहुंचते हैं। नेपाल से आने वाले श्रद्धालुओं की भी यहाँ अच्छी खासी तादात रहती है। सकुन ग्राम सभा के अंतर्गत आने वाले इस मंदिर में वर्षभर श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।

मान्यता है कि यहां मांगी जाने वाली तमाम मन्नतें पूरी होती हैं। पंचेश्वर बांध परियोजना के डूब क्षेत्र में आने के बाद से ही लोग खुद से पहले आस्था के इस केंद्र को बचाए जाने के लिए प्रयासरत हैं।

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जैसा कि हम सभी जानते हैं कि टिहरी बाँध बनने से एक तरफ जहाँ हमने रजवाड़ों की रचाई-बसाई और एक दम मुगलों की भाँती दृष्टीपटल को खो दिया है वैसे ही अब एक बार फिर हम और आप अपना एक और खूबसूरत शहर खोने को तैयार हैं।

खैर संसार तो कहीं पर भी बसाया जा सकता है लेकिन अगर बात करें देवी-देवताओं के मंदिरों की तो इनके साथ छेड़-छाड़ करना और इनकी पुनस्थापना करने का हमें क्या अंजाम भुगतना पड़ेगा, इससे हम एक बार पहले भी वाखिफ हो चुके हैं, जिसके कारण हमें केदारनाथ जैसी भीषण आपदा का दंश झेलना पड़ा। देखा जाए तो पुरानी बातों को ध्यान में रखते हुए ही मंदिरों की पुनस्थापना के बारे में सोचना होगा, अन्यथा हो सकता है कि उत्तराखंड को एक और भीषण आपदा को तैयार रहना होगा। 

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