उत्तराखंड में किसानों द्वारा कर्ज माफी को लेकर चर्चाएं सड़क से लेकर विधानसभा तक गरम हैं। यहां के किसान भी अब यूपी की तरह ही सरकार से कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं। जहां इस मुद्दे पर विपक्ष भी बार बार सरकार को घेर रहा है तो वहीं सरकार अन्नदाता की बुनियाद मजबूत करने की बात कह रही है। बता दें कि कुछ दिनों पहले पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कुछ मुद्दों को उठाया था।
जिनमें किसानों की कर्ज माफी, किसानों के बच्चों को आरक्षण देने की बात तथा उनकी फसलों का उचित मूल्य देने की बात कही गई थी। आज हमारे यह सवाल पूछने पर कि क्या आपने यह सब मांगे अपनी सरकार के सामने भी रखी थी तो अपने जवाब में किशोर उपाध्याय ने बताया कि उन्होनें हरीश रावत के सामने भी आरक्षण को छोड़कर बाकी सभी मांगे रखी थी।
लेकिन उनकी यह मांगे क्यों नहीं मानी गई इसका जवाब खुद कांग्रेस पार्टी के पास नहीं है। अब जब कांग्रेस विपक्ष में है तो किसानों की कर्ज माफी का मुद्दा लगातार उठा रही है । लेकिन कांग्रेस को भी सोचना चाहिए कि अगर वह अपनी सरकार में यह फैसले ले लेते तो उन्हें आज यह सब न करना होता।
वहीं प्रदेश के मुखिया भी कर्ज माफी को लेकर अपना रूख साफ कर चुके हैं। वे कह चुके हैं कि प्रदेश के किसानों का 12 हजार करोड़ रुपये कर्ज माफ करने के लिए राज्य की आर्थिक हालात सक्षम नहीं हैं।
वही केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने भी कल प्रदर्शन कर रहे किसानों पर निशाना साधते हुए कहा कि फसल कर्ज माफी इन दिनों एक फैशन बन गया है। भाजपा नेता ने आगे कहा कि किसानों को लोन माफी में जरूर छूट दी जानी चाहिए लेकिन अत्यधिक खराब परिस्थितियों में। उन्होंने कहा कि कर्ज माफी किसानों की भलाई के लिए आखिरी समाधान नहीं है।
वहीं किसान कर्ज माफी से जुड़े नायडू के बयान का विरोध करते हुए सीपीआई (एम) के लीडर सीतारम येचुरी ने कहा कि पिछले तीन सालों में 36 से 40 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय मंत्री द्वारा लोन माफी का फैशनेबल बताना हमारे अन्नदाताों का अपमान है।
वही केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली पहले ही साफ कर चुके हैं कि जो राज्य इस तरह की योजनाओं को आगे बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें अपने संसाधनों से इसके लिए धन की व्यवस्था करनी होगी। यानी स्पष्ट है कि अब केंद्र ने भी राज्यों को किसानों की कर्ज माफी के लिए स्वंय पैसों का बंदोबस्त करने की बात कह चुके हैं।