प्रकाश रांगड़, देहरादूनः आज उत्तराखंड राज्य बने पूरे 17 साल हो गए हैं। विडंबना है कि आंदोलनों और कुर्बानियों की नींव पर बना ये राज्य अब तक अपने पैरों पर खड़े होने लायक नहीं है। हक की लड़ाई अब तक जारी है। सियासत के खेल ऐसे निराले हैं कि 17 साल में राज्य 9 मुख्यमंत्री देख चुका है। आम लोगों को आस थी कि अब उन्हें अपने घर में रोजगार मिलेगा। असलियत ये है कि राज्य बनने के बाद पलायन करीब 40 फीसदी तक बढ़ गया। गांव के गांव बंजर हो गए। राज्य की माली हालत ऐसी है कि हर इंसान के सिर पर करीब 45 हजार का कर्ज है। जिस राज्य निर्माण के लिए शहीदों ने अपने प्राणों की आहूति दी, उनके सपने 17 सालों में पूरे नहीं हो पाए।शहीदों के सपनों के अनुरूप उत्तराखंड निर्माण की परिकल्पना पर सियासत दां खरे नहीं उतर पाए। राज्य बनने से सबको आस थी कि अब घर- गांवों की हालत सुधरेगी। सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाएं पहाड़ों में मिलेंगी। युवाओं को प्रदेश में ही रोजगार मिलेगा, लेकिन पीछे पलट कर देखते हैं तो हुआ इससे उलट। राज्य के बनने के बाद जो पलायन रुकना चाहिए था उसमें बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। आंकड़ों के मुताबिक राज्य बनने के बाद पहाड़ के 3 हजार गांवों से 40 फीसदी से ज्यादा पलायन हुआ।उत्तराखंड ने 17 सालों में 15 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च गांवों के विकास के नाम पर किए लेकिन हालत तब भी नहीं सुधरी। आंकड़ों के अनुसार देहरादून जिले में 20, 625, हरिद्वार 18, 437, यू एस नगर 11, 438, अल्मोड़ा 36, 401, पिथौरागढ़ 22, 936, चंपावत 11, 281, बागेश्वर 10, 073, नैनीताल 15, 075, पौड़ी 36, 654, टिहरी 33, 689, उत्तरकाशी 11, 710, चमोली 18, 535, रुद्रप्रयाग में 10, 971 घर सूने हो गए। (उक्त आंकड़े 2011 की जनगणना के आधार पर)।ये घर रोजगार और सुविधाओं की तलाश में सूने हो गए। विकास के सपने तो पूरे नहीं हो पाए लेकिन राज्य के उपर कर्ज का बोझ जरूर बढ़ा। राज्य बनते वक्त 3185.91 करोड़ रुपये यूपी से मिले थे। जबकि 3377.75 करोड़ रुपये का अलग से कर्ज मिला था। वर्तमान में करीब 45 हजार करोड़ रूपए का कर्ज उत्तराखंड झेल रहा है। जिस तेजी के साथ उत्तराखंड कर्ज में डूबा है उस हिसाब से 2020 तक प्रदेश पर 62000 करोड़ तक कर्ज चढ़ने का अनुमान है। आलम यह है कि आज भी लोग हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। राज्य बनने से पहले पूरे उत्तराखंड ने हक की लड़ाई लड़ी। राज्य बना तो लगा कि शायद अब हक के लिए सड़कों पर नहीं उतरना पडे़गा, मगर नेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ ने आम जनमानस को फिर से सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया।उत्तराखंड 17 सालों में सियासी उठापटक की काली छाया का शिकार रहा। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 17 साल में 9 सीएम बदल गए। हर सीएम बस अपनी कुर्सी ही बचाता रह गया। 17वीं वर्षगांठ तो सियासी लिहाज से बेहद ही शर्मनाक है। मार्च 2016 में राज्य ने जो सियासी संग्राम देखा वो शर्मनाक रहा। भारी दल बदल के चलते 17 साल के किशोर उत्तराखंड ने राष्ट्रपति शासन तक देखा।उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के नाम-
– नित्यानंद स्वामी
– भगत सिंह कोश्यारी
– नारायण दत्त तिवारी
– भुवन चंद्र खंडूड़ी
– रमेश पोखरियाल निशंक
– भुवन चंद्र खंडूड़ी
– विजय बहुगुणा
– हरीश रावत
-त्रिवेंद्र सिंह रावत, वर्तमान।झेली कुदरत की त्रासदी-
उत्तराखंड को कुदरत ने 17 सालों में इतने जख्म दिए जो कि शायद ही कभी भर पाएंगे। 17 सालों में उत्तराखंड ने भूकंप, भूस्खलन जैसी स्थिति के बीच खौफनाक आपदाएं देखीं। सबसे अधिक जख्म उत्तराखंड को 2003 की वरूणावत, 2010 की भटवाड़ी, 2012 व 2013 की चमोली, पिथौरागढ़, केदारनाथ त्रासदी ने दिए, जिनके जख्म आज भी नहीं भर पाए। यह ऐसा दर्द है जो सदियों तक राज्य के आम जनमानस को सालता रहेगा। ज्यादा चिंता की बात ये है कि अलग राज्य में आपदा प्रबंधन की ठोस व्यवस्था अब तक हमारी सरकारें नहीं कर पाई।
जरा याद करो कुर्बानी…कहां कितने आंदोलनकारी हुए शहीद-
देहरादून-8
मसूरी-7
खटीमा – 5
पौड़ी – 2
कोटद्वार – 2
ऋषिकेश- 1
चमोली – 1
ऊखीमठ- 1
– नित्यानंद स्वामी
– भगत सिंह कोश्यारी
– नारायण दत्त तिवारी
– भुवन चंद्र खंडूड़ी
– रमेश पोखरियाल निशंक
– भुवन चंद्र खंडूड़ी
– विजय बहुगुणा
– हरीश रावत
-त्रिवेंद्र सिंह रावत, वर्तमान।झेली कुदरत की त्रासदी-
उत्तराखंड को कुदरत ने 17 सालों में इतने जख्म दिए जो कि शायद ही कभी भर पाएंगे। 17 सालों में उत्तराखंड ने भूकंप, भूस्खलन जैसी स्थिति के बीच खौफनाक आपदाएं देखीं। सबसे अधिक जख्म उत्तराखंड को 2003 की वरूणावत, 2010 की भटवाड़ी, 2012 व 2013 की चमोली, पिथौरागढ़, केदारनाथ त्रासदी ने दिए, जिनके जख्म आज भी नहीं भर पाए। यह ऐसा दर्द है जो सदियों तक राज्य के आम जनमानस को सालता रहेगा। ज्यादा चिंता की बात ये है कि अलग राज्य में आपदा प्रबंधन की ठोस व्यवस्था अब तक हमारी सरकारें नहीं कर पाई।
जरा याद करो कुर्बानी…कहां कितने आंदोलनकारी हुए शहीद-
देहरादून-8
मसूरी-7
खटीमा – 5
पौड़ी – 2
कोटद्वार – 2
ऋषिकेश- 1
चमोली – 1
ऊखीमठ- 1