‘शिव’ शब्द का वास्तविक अर्थ ही है- जो नही है। ‘जो नहीं है’ से आशय है, जिसका अस्तित्व ही नहीं है। ‘जिसका अस्तित्व ही नहीं है’ का आशय है- रिक्तता, शून्यता। आकाशगंगाएं तो महज एक छोटी सी जगह हैं। सृष्टि का असल सार तत्व तो रिक्तता या कुछ न होने में है। इसी रिक्तता या कुछ न होना के गर्भ से ही तो सृष्टि का जन्म होता है। इस ब्रम्हांड के 99 फीसदी हिस्से में यही रिक्तता छाई हुई है, जिसे हम शिव के नाम से जानते हैं।
शिव में ‘शि’ ध्वनि का अर्थ मूल रूप से शक्ति या ऊर्जा होता है और “व” “वाम” से लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रवीणता। ‘शि-व’ मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित या नियंत्रित करता है। दिशाहीन ऊर्जा का कोई लाभ नहीं है, वह विनाशकारी हो सकती है। इसलिए जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो हम ऊर्जा को एक खास तरीके से, एक खास दिशा में ले जाने की बात करते हैं।
शिव यानि भोले भंडारी कल्याणकारी, शिवशम्भू, शिवजी, नीलकंठ, रूद्र, भगवान भोले सबसे लोकप्रिय भगवान हैं, देवों के देव कहे जाने वाले शिव यहां तक कि असुरों के भी कल्याणकारी उपासक रहे हैं। आज दुनिया भर के लोग श्रावण माह की शिवरात्री मना रहे हैं। जिसके लिए अर्द्धरात्रि से ही लोग शिवालयों में जाकर जलाभिषेक कर रहे हैं।
शिव की लोकप्रियता का कारण है इनकी स्नेहता। शिव असुर व दैत्य, देवी-देवताओं और धरते पर जन्में मनुष्यों के लिए समानरूपी हैं । वो सभी से एक समान स्नेह करते हैं। शिव हमेशा ही सत्यता और अच्छाई के पक्षधर रहे हैं। फिर चाहे वे असुर हों देवी-देवता हों या धरते पर जन्में मनुष्यों के लिए।
माना जाता है कि यदि भोलेभंडारी को सच्चे मन से याद कर लिया जाए तो शिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। शिव सबसे सरल और दयालू हैं। इसीलिए बड़े-बड़े राक्षस प्रजाति भी शिव के स्नेही रहे हैं। इसी कारण शिव सबसे महान हैं और सबमें सबसे अलग।
जितिषाचार्य के अनुसार शिव जी का सबसे प्रिय दिन सोमवार होता है। और इसी दिन भगवान शिव की अराधना का दिन माना जाता है। हर माह में मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है लेकिन साल में शिवरात्री का मुख्य पर्व भक्त बड़ी ही धूम-धाम से मनाते हैं। श्रावण माह में शिवरात्री वो पर्व है जब शिव अपने सभी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। और उन्हें सभी बाधाओं से दूर रखते हैं। इसलिए इस पर्व को शिवभक्त बड़े ही भक्तिभाव से मनाते हैं। इसी अवसर पर श्रद्धालू कांवड के जरिए गंगाजल लाकर भगवान शिव को विशेष स्नान करवाया जाता है।
टपकेश्वर महादेव मंदिर के महंत महाराज भरतगिरी ने हेल्लो उत्तराखंड से बात करते हए कहा कि इस बार सावन की शिवरात्रि का विशेष महत्व है क्यूंकि कई दशकों के बाद ऐसा संजोंग बना है जब श्रावण माह में किए जाने वाले व्रतों का आरंभ सोमवार से ही हुआ और आखिरी वत्र भी सोमवार को ही होगा। जो भारत वर्ष के लिए कल्याणकारी रहेगा।
आपको बता दें कि श्रावण माह के पहले वत्र की शुरूआत 10 जुलाई यानि कि सोमवार के ही दिन हुई और श्रावण माह का अंतिम व्रत भी सोमवार को ही पड़ रहा है। जिसका संयोग कई दशकों बाद पड़ रहा है।
पहली तिथि वार व संयोग के पहले दिन से ही महादेव के भक्तों को व्रत कर पूजन करने का अवसर मिला। जिसका सीधा सुख भक्तों को मिलेगा। जो भी भगवान शिव की इस दौरान पूरे भाव के साथ पूजा करेगा उसे अन्नंत सुख, समृद्धि प्रदान होगी। इस माह और इस शुभ अवसर पर जो भी भगवान भोले का स्मरण करेगा उसकी सभी इच्छाएं तो पूर्ण होंगीं ही लेकिन जो इस दौरान दान-पुण्य एवं सच्चे मन से भगवान भोले का पूजन करेगा वह समस्त जोर्तिलिंगों के दर्शन करने के समान होगा। साथ ही उन्होंने बताया कि तिथि के घटने के कारण इस बार श्रावण 29 दिन का होगा। उन्होंने बताया कि 5 सोमवार जोतिष्य, शांतनु, शास्त्र के अनुसार 5 अंकों का अपना खासा महत्व होता है। जिसका फल भक्तों को मिलता है।
वहीं आखिरी सोमवार को राखी का त्योहार भी है जिसका इस बार खासा महत्व होगा। इस बार राखी का यह पर्व श्रावण माह के अंति सोमवार को पड़ रहा है। महंत महाराज भरतगिरी ने बताया कि राखी का शुभ मुर्हुत सुबह 11 बजे से दोपहर 1ः50 तक रहेगा। उनका यह भी कहना है कि शिव को जलाभिषेक देते समय पंचांक्शी मंत्र यानि कि ऊं नमः शिवाय मंत्र व महामिर्तुन्जय का जाप करें।