देहरादूनः विकास पुरूष के नाम से पहचाने जानें वाले और एकमात्र दो राज्यों के मुख्यमंत्री का गौरव हासिल करने वाले नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड की एक नींव हैं। उत्तराखंड ही नहीं उत्तरप्रदेश राज्य के विकास में उनकी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। देश की स्वतंत्रता के लिए भी इनका ही नहीं इनके परिवार का भी अहम योगदान रहा।
विकास कार्यों में नारायण दत्त तिवारी और उनकी भूमिका से शायद ही कोई अनभिज्ञ हो लेकिन उत्तराखंड राज्य गठन के बाद नारायण दत्त तिवारी ने उत्तराखंड और उत्तराखंड वासियों के लिए तमाम विकास कार्य किये, जिसमें युवाओं को रोजगार देने के लिए उन्होंने विशेषकर सिडकुल की नीव राखी। इतना ही नहीं जब नारायण दत्त तिवारी उत्तरप्रदेश की सत्ता में थे तो उन्होंने ही नोएडा शहर में भी कई विकास कार्य किये। तभी तो उनको विकास पुरूष के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि वो समय-समय पर काफी चर्चाओं का विषय भी बने रहे, जिसके कारण उत्तराखंड की राजनीति गलियारों में खूब गर्मागर्मी भी रही।
आज तेज-तररार और गर्मजोशी मिजाज के नारायण दत्त तिवारी गंभीर बीमारी की चपेट में आ गए हैं। कल ही उनको दिल्ली के एक निजी अस्पताल में ब्रेन स्ट्रोक होने के कारण भर्ती करवाया गया है। हालांकि अभी उनको कल से 72 घंटे तक आईसीयू में रखा गया है।
हम आपको बता दें कि राजनीतिज्ञय रहे नारायण दत्त तिवारी मूल रूप से नैनीताल जिले के बलूती गांव के हैं। जिनका जन्म 1925 में हुआ था। नारायण दत्त तिवारी की शुरूआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल में हुई। इनके पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में तैनात थे। लेकिन महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान उनके पिता ने अपने पद से स्तीफा दे दिया। जिसके बाद वो आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। नारायण दत्त तिवारी भी अपने ही पिता के नक्शे-कदमों पर चले और वो भी आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। 1942 में वे ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पैंपलेट छापने और उसमें सहयोग देने के आरोप में पकड़े गए। और उनको नैनीताल जेल भेज दिया गया। यहां 15 महीने की जेल काटने के बाद इलाहबाद विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एमए टॉप किया। और बाद में छात्र राजनीति में कदम रखा। इसके बाद फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। पहले नैनीताल सीट से विधानसभा चुनाव में उतरे जहां कांग्रेस की लहर भी उनका कुछ न बिगाड़ पाई और पहले ही प्रयास से विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंच गए। 1963 तक वो सोशलिस्ट पार्टी के साथ रहे। फिर 1965 में कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में जगह पाई। फिर उनका सफर कभी थमा नहीं एक के बाद एक कर उन्होंने चुनावी जंग जीती और 1जनवरी 1976 को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि वो इस पद पर ज्यादा न टिक पाए। नारायण दत्त तिवारी ने 1977 में जयप्रकाश आंदोलन के कारण 30 अप्रैल को उनकी सरकार को स्तीफा देना पड़ा। लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और तीन बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए। और उत्तरप्रदेश विभाजन के बाद उत्तरांचल के भी मुख्यमंत्री रहे।