जब विभाग ही हो सुस्त तो फिर ऊर्जा प्रदेश का सपना कैसे होगा पूरा ?

Please Share
जब विभाग ही हो सुस्त तो फिर ऊर्जा प्रदेश का सपना कैसे होगा पूरा ? 2 Hello Uttarakhand News »

उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश बनाने का सपना यहां के लोग पिछले कई सालों से देख रहे हैं। सरकारों के नुमाइंदे भी समय समय पर अपने वोटो को खीचनें के लिए यह सपना प्रदेश की जनता को अपने भाषणों से सुनाते रहते हैं। लेकिन प्रशासन और विभाग के कामों की ढिलाई को देखते हुए यह ऊर्जा प्रदेश के सपने पर धीरे धीरे प्रश्न चिन्ह लग रहा है। जिसकी बानगी इस रिपोर्ट में देखी जा सकती है…

जहां पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन लिमिटेड यानि कि पिटकुल को श्रीनगर से काशीपुर तक 400 किलोवाट की ट्रांश्मिशन लाइन बिछानी थी। इसके 700 करोड़ रुपये के बजट का 90 फीसदी विश्व बैंक और 10 फीसदी राज्य सरकार को देना था। पिटकुल ने ट्रांस्मिशन लाइन बिछाने के लिए मुम्बई की ज्योति स्ट्रक्चर कम्पनी से सर्वे करवाया जिसने 152.8 किमी लंबी लाइन बनाने की सलाह दी। पिटकुल ने कंपनी को 57 लाख रुपये का भुगतान कर दिया जिसके बाद एक कोरियन कंपनी मैसर्स कोबरा को ये लाइन बिछाने का काम दिया।

लेकिन अनुबंध करने के बाद मैसर्स कोबरा ने सबसे पहला काम पुराने सर्वे को ख़ारिज करने का किया और खुद नया सर्वे किया। इस सर्वे में ट्रांस्मिशन लाइन की लंबाई 190 किलोमीटर बताई गई जिसमें से करीब 25 किमी लाइन उत्तरप्रदेश की सीमा से होकर गुज़रनी थी। लेकिन उत्तरप्रदेश सरकार से इस संदर्भ में कोई बातचीत तक नही की गई हालांकि केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा पिटकुल को स्पष्ट निर्देश थे कि ये लाइनें उतराखंड के ही अंदर ही बननी हैं।

इससे 3.47 करोड़ प्रति किलोमीटर की दर से यह करीब 530 करोड़ रुपये की परियोजना की अनुमानित लागत बढ़कर 659 करोड़ रुपये से अधिक हो गई। पिटकुल ने मैसर्स कोबरा को काम शुरू करने के लिए अक्टूबर 14 में ब्याज मुक्त 53 करोड़ रुपये का भुगतान भी कर दिया। अनुबंध के तहत कंपनी को काम शुरू कर 900 दिन के अंदर पूरा करना था लेकिन अब तक एक पत्थर भी नहीं लगाया गया।

सिर्फ़ यही नहीं कंपनी को किए गए भुगतान का कोई हिसाब भी पिटकुल को नहीं मिला है। अगर पिटकुल यह पैसा बैंक में रखता तो करीब करीब दो साल में लगभग आठ करोड़ रुपये ब्याज से ही कमा कर अपना राजस्व को बढा सकता था।

इस मामले में हैलो उत्तराखंड न्यूज द्वारा पिटकुल के प्रबंध निदेशक एसएन वर्मा से पूछे जाने पर उन्होनें कहा कि हमने आखिरी मौका देते हुए काम शुरू करने के लिए मैसर्स कोबरा को तीन महीनों का समय दिया था कि लेकिन वह काम शुरू नहीं कर पाई जिसके बाद हमने बैठक कर निर्णय लिया कि या तो इसी कंपनी को रिस्क एंड कॉस के आधार पर काम दिया जाएगा या फिर सेकेंड बीड करने वाली टाटा कंपनी को इसी रेट पर ऑफर किया जाएगा।

अगर दोनों ही कंपनियों इस परियोजना को करने में अपनी असमर्थता दिखाते हैं तो फिर इसके लिए रिटेंडरिंग की जाएगी। इसी के साथ ही उन्होनें कहा कि 106 करोड़ रुपये मैसर्स कोबरा कंपनी से वसूल लिए गये है।

You May Also Like

Leave a Reply