गंगा में दिए जा रहे खनन पट्टों के विरोध में पिछले 24 मई से अनशन कर रहे मातृ सदन के स्वामी शिवानन्द और अनशन तुड़वाने के लिए प्रयासरत प्रशासन की बीच अब लड़ाई खुल कर सामने आ गई है। बीते रोज जो कुछ भी हुआ उसे देखकर ये फैसला करना मुश्किल था आखिर कौन सही है और कौन गलत। एक तरफ स्वामी शिवानन्द का दढ़ संकल्प था तो दूसरी ओऱ प्रशासन का शिवानंद को बचाने का प्रयास ।
बीते चार दिनों से जल को त्याग और खुद को बन्द कर चुके शिवानंद की बिगड़ती हालात पर सक्रिय हुआ प्रशासन कल एसडीएम के नेतृत्व में संख्या बल के साथ आश्रम पहुंच गया। जहां पहले तो शिवानंद से आग्रह कर अनशन तोड़ने का निवेदन किया औऱ जब बात नहीं बनी तो शिवानंद को जबरन उठाने के लिए कंटिग मशीन से आश्रम के ताले और चैनल गेट को काटने का प्रयास प्रशासन द्वारा किया जाने लगा। जिसके बाद आश्रम के संतो का पारा सातवे आसमान में पहुंच गया, जिस कारण संतो औऱ प्रशासन के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई।
अपनी आखों के सामने बरपे इस हंगामें को देखकर स्वामी शिवानंद बर्दाश्त नहीं कर पाये और अपना मौनव्रत तोड़ते हुए शासन और प्रशासन को खूब फटकार लगाई। प्रशासन पर खनन माफियों के दबाव में काम करने का आरोप लगाते हुए शिवानंद का कहना है कि गंगा के लिए उन्हें अगर अपनी जान भी दे देनी पड़े तो वे पीछे नहीं हटेंगे। एसओ कनखल से बातचीत के बाद पता चला है कि अभी तक शिवानंद ने खुद को बन्द किया हुआ है औऱ किसी की कोई बात नहीं सुन रहे हैं।
गंगा पर खनन को लेकर शिवानंद औऱ प्रशासन के बीच चल रही इस लड़ाई को शासन कब और कैसे सुलझायेगा ये देखने वाली बात होगी। वहीं अपने प्राण को त्यागने के लिए तत्पर स्वामी शिवानंद को भी अपनी जिद पर पुन:विचार कर प्रशासन द्वारा किये बातचीत के आग्रह की तरफ विचार करना चाहिए। क्योकिं बातचीत ही बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान है।