देहरादून: उत्तराखंड राज्य निर्माण के सपने को साकार करने के लिए आंदोलन कर रहे उत्तराखंडीयों के लिए आज का दिन काफी अहम माना जाता है। आज उत्तराखंड के वीर सुपुतों ने उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए अपनी जान न्याैंछावर कर दी थी। आज के दिन राज्य निर्माण की मांग को लेकर महिलओं और बच्चो समेत हजारों आंदोलनकारियों खटीमा की सड़कों में उतरे थे लेकिन उनपर बर्बरता से गोलियों बरसाई गई। इस घटना की आज 23वी बरसी है।
उत्तरप्रदेश से अलग होने की मांग को लेकर एक सितंबर, 1994 को खटीमा में राज्य आंदोलनकारी सभा कर रहे थे, सभा के दौरान पुलिस ने उन्हें खदेड़ दिया जिसके बाद आन्दोलनकारियों की भीड़ कोतवाली जा पहुंची। भीड़ को देखते हुए उन्हें रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग की जिसमें सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई, जबकि करीब डेढ़ दर्जन गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे।
खटीमा गोलीकांड में श्रीपुर बिचवा निवासी भगवान सिंह, झनकट निवासी प्रताप सिंह, इस्लाम नगर निवासी सलीम, उमरूकला निवासी धर्मानंद भट्ट, रतनपुर निवासी गोप चंद्र, राजीव नगर निवासी परमजीत सिंह, नवाबगंज निवासी रामपाल सिंह शहीद हो गये थे।
इस आन्दोलन की चिंगारी खटीमा से लेकर मसूरी और मुजफ्फनगर तक फैल गई। खटीमा के बाद मंसूरी और मुजफ्फरनगर में भी गोलीकांड हुआ। दो सितंबर 1994 को पहाड़ों की रानी मसूरी में हुए गोलीकांड में पुलिस की गोली से 6 राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे। खटीमा और मसूरी गोलीकांड की 23वीं बरसी पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने ट्वीट कर शहीदों को याद किया है।
साथ ही मुख्यमंत्री ने शहीदों को श्रधांजलि देते हुए खटीमा में शहीद स्मारक बनाने की घोषणा की है।