मंयक ध्यानी की खास रिपोर्ट
पिछले तीन महीनों के दौरान नई सरकार पर जुबानी हमले की बात हो या फिर विधानसभा सत्र के दौरान धरने पर बैठने की…हरीश रावत विपक्ष का रोल मीडिया में बखूबी निभा रहे हैं। जिसके चलते नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश और कांग्रेस अध्य़क्ष प्रीतम सिंह आज भी हरीश रावत के पीछे ही नजर आ रहे हैं।
कभी प्रदेश की शीर्ष सत्ता पर काबिज औऱ प्रदेश की राजनीति में सबसे बड़े चेहरे के तौर पर छाये हुए हरीश रावत आज खुद को संगठन में सक्रिय रखते हुए नजर आ रहे हैं।
चुनाव का दौर आज भी जनता के दिलों और दिमाग से नहीं गया है, जब विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का मतलब सिर्फ औऱ सिर्फ हरीश रावत हो गये थे। सड़कों की होर्डिंग से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह हरीश रावत कांग्रेस का एकमात्र चेहरा बने हुए थे। यहां तक की कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की तस्वीरें भी प्रचार प्रसार के कई माध्यमों से गायब दिखी। सभी ने देखा कि किस तरह से एक समय आते आते हरीश रावत ही पार्टी के सबसे बड़े चेहते चेहरे हो गये और सारे चेहरे उनकी परछाई में छिपते हुए नजर आए।
जिसका परिणाम यह निकला कि बीजेपी का ‘क्या हाल जनता बदहाल’ का नारा कांग्रेस पर चरित्रार्थ हो गया औऱ पूरी की पूरी कांग्रेस 11 सीटों के साथ पहली बार इतनी बदहाल औऱ मजबूर नजर आई।
कांग्रेस का यह घाव एक बार फिर से इसलिए छेड़ रहा हुं क्योकिं वर्तमान में हरीश रावत फिर से कांग्रेस के सूत्रधार की भूमिका में नजर आते दिख रहे हैं। इस समय कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में उत्साह का बिगुल फूकनें की जरूरत है, जिसके लिए आलाकमान ने सेनापति के रूप में प्रीतम सिंह को कमान सौंपी है।
लेकिन सेनापति की भूमिका में दिख रहे हैं हरीश रावत.. वहीं हरीश रावत जो खुद ही कांग्रेस की हार का जिम्मेदार खुद को बता चुके हैं। वहीं हार जिसकी वजह से प्रदेश के तमाम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का मनोबल रसातल की ओर चला गया है।
घाव देने वाला अगर खुद ही मरहम लगाने आ जाए तो किसे शिकायत होगी। यही सोच शायद अब हरीश रावत मरहम लेकर अपनी 2019 की जमीन तैयार करने में जुट गये हैं।