शिवलिंग पर जल, बिल्व पत्र और आक क्यूं चढ़ाते हैं ?
भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठा लो तो हैरान हो जाओगे कि भारत सरकार के न्यूकिलिअर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योत्रिलिंगो के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है |
शिवलिंग को न्यूक्लिअर रिएक्टर्स भी माना जाता है, तभी उनपर जल चढ़ाया जाता है ताकि वो शांत रहे। महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे बिल्व पत्र, आक, आकमद, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्यूक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं |
क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है तभी जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता | भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिव लिंग की तरह है।
जैसे सूर्य पर जल चढाते समय , जल से होकर शरीर पर पड़ती सूर्य किरणे ,शारीरिक रोगों को नष्ट करती है , उसी प्रकार , शिवलिंग पर जल और दूध चढाते समय , शिवलिंग से निकलती अद्रश्य आणविक विकरण ऊर्जा जल से हानि रहित होकर अत्यंत लाभकारी बनकर सभी त्रितापो दैहिक दैविक और भौतिक तापो को नष्ट कर देती है।
शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिल कर औषधि का रूप ले लेता है |
इसीलिए ज्यादातर ज्योतिर्लिंग नदियों के किनारे स्थित हैं। हमारे बुजुर्ग हम लोगों से कहते रहे है कि महादेव शिव शंकर अगर नराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी |
ज़रा गौर करो, हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है |
ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता, और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते ।
क्या आणविक ऊर्जा भी सदाशिव ,महाकाल का ही एक रूप है ? जी हाँ यही सत्य है जब तक सात्विक बुद्धि से इसका उपयोग होता है यह सदाशिव की तरह असीमित ऊर्जा के साथ सर्व सुख सम्पन्नता प्रदान करती है और दुरूपयोग होते ही महाकाल का रूद्र तांडव शुरू हो जाता है।
जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है वो सनातन है, इसी विज्ञान को कालान्तर में लुप्त होने से बचाने के लिए परम्पराओं का जामा पहनाया गया है, ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें |