एक तरफ जहां किसान बैंको से लोन के बोझ के तले दबे होने पर आत्महत्या करने को विवश हैं। वहीं दूसरी ओर प्रदेश भर के किसानों की स्थिति में सुधार आया है। यह बात हम केवल जुबानी बात नहीं बता रहे हैं बल्कि इस बात का आज हम आपको उदाहरण भी पेश कर रहे हैं।
भारत एक कृषि प्रधान देश है यहां कृषि कर ही एक किसान अपने घर-परिवार को संभालता है। लेकिन धीरे-धीरे किसान आर्थिक तंगे से जूझ रहे हैं और विवश होकर आत्महत्या कर रहे हैं। हम आपको बता दें कि प्रदेश में जिन भी किसानों ने आत्महत्याएं की हैं वो सभी कर्ज के तले दबे हुए थे। लेकिन इन सब के बीच खुशी की बात यह है कि 2014 के बाद से अभी तक मंडी समिति में किसी भी किसान ने कोई भी शिकायत दर्ज नहीं की है। यानि कि सभी किसानों को उनकी मेहन्नत का उचित मूल्य मिल रहा है और उनका किसी भी प्रकार का कोई शोषण नहीं हो रहा है।
इस बात की जानकारी हैलो उत्तराखंड को निरंजनपुर मंडी इंस्पैक्टर अजय डबराल ने दी। इस प्रकार के उदाहरण को देख तो यही लगता है कि अब किसानों की स्थिति में सुधार हो रहा है और उनको समय पर उनका उचित मूल्य मिल रहा है।
एक तरफ भले ही मंडी समिति का कहना है कि किसानों की स्थिति में सुधार आया है और उनको उनका उचित मूल्य मिल पा रहा है। लेकिन समझने वाली बात यह भी है कि यदि किसानों की स्थिति में सुधार आया होता तो भला किसान बैंकों से लोन क्यूं लेता और कर्ज के तले दबकर आत्महत्या क्यूं करता?