कर्ज में डूबी व घाटे में चल रही सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया को बेचने का सैद्धांतिक फैसला कर चुकी मोदी सरकार, अब इसे कई हिस्सों में बेचने पर विचार कर रही हैं। इस कदम के जरिए सरकार संभावित खरीदारों को आकर्षित कर इसे फायदे का सौदा बनाना चाहती है। प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने एयर इंडिया की बिक्री की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अगले साल की शुरुआत तक का समय निर्धारित किया है क्योंकि पीएम मोदी अपना कार्यकाल पूरा होने तक इस प्रक्रिया को पूरा करना चाहते हैं। हालांकि, अभी इस बात का फैसला नहीं हो पाया है कि सरकार को अपने पास कुछ हिस्सेदारी रखनी चाहिए या फिर उसे पूरी तरह बेच देना चाहिए।
एयर इंडिया को बेचने को लेकर पिछले महीने ही केंद्रीय मंत्रीमंडल ने एयर इंडिया में विनिवेश को सैद्धांतिक मंजूरी दी थी। इससे पहले एयर इंडिया के ऑपरेशन को जारी रखने के लिए सरकारें लगातार कई अरबों डॉलर खर्च कर चुकी हैं।
अब एयर इंडिया पर करीब 55,000 करोड़ रुपये का कर्ज हैं। 2012 में यूपीए सरकार ने उसे 30,000 करोड़ रुपए का बेल आउट पैकेज दिया था।
केंद्र सरकार के पांच वरिष्ठ मंत्री, वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में इस महीने बैठक करेंगे और एयर इंडिया को बेचने की योजना की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेंगे। बैठक में विचार होगा कि कितनी हिस्सेदारी बेची जाए और साथ ही नीलामी प्रक्रिया के मानक भी तय किए जाएंगे। बैठक में कंपनी की तीन सहायक इकाइयों में विनिवेश, उसके कर्ज पर भी चर्चा होगी। विश्लेषकों के अनुसार, सरकार के इसे भारतीय खरीददारों को बेचने की ज्यादा संभावना है। खबर ये भी है कि इसे बेचने की प्रक्रिया भी जल्द ही शुरू की जाएगी। फिलहाल एयर इंडिया को खरीदने के लिए सिर्फ टाटा समूह और इंडिगो दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
अभी कुछ सप्ताह पहले पीएमओ और उड्डयन मंत्रालय के अधिकारियों ने एयर इंडिया की बिक्री में टाटा संस की रुचि देखने के लिए रतन टाटा से मुलाकात भी की थी। 1953 में एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण से पहले टाटा संस ही इसका परिचालन करता था। इसके अलावा इंडिगो ने भी गुरुवार को कहा था कि उसे एयर इंडिया के अंतरराष्ट्रीय परिचालन और एयर इंडिया एक्सप्रेस में रुचि है। 1930 में पहली बार अस्तित्व में आई एयर इंडिया कई पीढ़ियों तक अपने महाराजा मस्कट के कारण काफी चर्चित रही जो कि अब 8.5 बिलियन डॉलर के कर्ज के बोझ तले दबी है। सरकार 2012 से लेकर अब तक कर्ज से उबरने के लिए करीब 3.6 डॉलर का निवेश कर चुकी है।
कभी देश की सबसे बड़ी विमानन कंपनी रही एयर इंडिया का मार्केट शेयर घरेलू बाजार में इंडिगो और जेट एयरवेज जैसी निजी विमानन कंपनियों के आने के बाद गिरकर 13 फीसदी रह गया। एयर इंडिया को कर्ज से उबराने के लिए सरकारों द्वारा पूर्व में उठाए गए सभी कदम असफल रहे हैं। अगर मोदी सरकार इसे बेचने में सफल हो जाती है तो एक सुधारक के रूप में पीएम की छवि और मजबूत होगी।