नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश के आईसीएससी विद्यालयों को छोड़कर राजकीय/सहायता प्राप्त विद्यालयों /मान्यता प्राप्त अशासकीय विद्यालयों व अंग्रेजी माध्यम से संचालित विद्यालयों में कक्षा 1 से 12 तक के विद्यालयों में सिर्फ एनसीआरटीई की ही किताबें चलने के विरुद्ध दायर याचिकाओ में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शुद्धांशु की एकलपीठ ने मुख्य सचिव से विस्तृत जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 11 अप्रैल की तिथि नियत की है। मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान सीबीएससी बोर्ड के अधिवक्ता सशांक उपाध्याय ने अपने जवाब में कहा है कि, माध्यमिक तक की कक्षाओं में एनसीईआरटी ही की किताबें चलनी चाहिए क्योंकि, ये किताबें मान्यता प्राप्त हैं और ऑथेंटिक है। साथ ही सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में इन्ही किताबों का प्रचलन है। कक्षा 9 से 12 तक नेशनल क्यूरेकलम फ्रेम द्वारा मान्यता प्राप्त किताबों का ही चलन किया जाय। इसके अलावा यदि पब्लिक स्कूल किसी अन्य पब्लिशर या लेखक की बुक का चलन करता है तो, इसके लिए स्कूल प्रबंधक खुद जिम्मेदार होंगे। सरकार का पक्ष रखते हुए अपर महाधिक्वता पंकज पुरोहित ने कोर्ट को अवगत कराया कि, सरकार ने सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें लागू करने पर संविधान का कोई उल्लंघन नहीं किया है। सरकार ने सबके लिए समान शिक्षा की नीति अपनाई है।
मामले के अनुसार नॉलेज वर्ल्ड माजरा देहरादून ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि, सरकार ने 23 अगस्त 2017 को एक शाशनादेश जारी कर उत्तराखंड में आईसीएससी विद्यालयों को छोड़कर समस्त राजकीय /सहायता प्राप्त विद्यालयों/मान्यता प्राप्त अशासकीय विद्यालयों और अंग्रेजी माध्यम से चलने वाले विद्यालयों में एनसीईआरटीई की ही किताबें चलने का शाशनादेश जारी किया था और निजी प्रकाशक की किताबों को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया था। शाशनादेश के लागू करने का मुख्य कारण यह भी था कि, निजी विद्यालयों में निजी प्रकाशक की ही किताबें महंगे दामों पर बेची जाती है और अभिभावकों पर अतिरिक्त व्यय भार पड़ता है तथा इसका उद्देश्य शिक्षा का व्यवसायीकरण को रोकना है। यदि किसी स्कूल या दुकान में निजी प्रकाशक की किताबे बेचीं या लागू की जाती है तो उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाय। यदि किसी विषय के लिए निजी प्रकाशक की किताब नितांत आवश्यकत है तो, उसका मूल्य एनसीआरटीई की दरों पर उपलब्ध कराई जाय। इन स्कूलों में निजी प्रकाशकों की किताबें चलाने को लेकर उन्होंने इस साशनादेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। मामले को सुनने के बाद कोर्ट ने सरकार से इस सम्बन्ध में विस्तृत शपथ पत्र 11 अप्रैल तक पेश करने को कहा है। साथ में यदि पब्लिक स्कूल इस सम्बन्ध में हड़ताल करते हैं तो उनकी याचिकाएँ निरस्त की जा सकती हैं।