ऊर्जा निगम के काले कारनामे, गड़बड़झाला में संदिग्ध अधिकारियों को ही बनाया जांच टीम का सदस्य!

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देहरादून: जरा सोचिए, यदि चोर को ही जज बना दिया जाए तो क्या कभी चोरी पकड़ में आएगी? यकीनन आपका जवाब न में ही आएगा। लेकिन उत्तराखंड के एक विभाग ने इस कहावत को हकीकत में तब्दील करने का फाॅर्मूला अपनाया है।

यह विभाग कोई और नहीं बल्कि प्रदेश का ऊर्जा विभाग है। जहां लाखों का रूपए ट्रिप रिले क्रय का गड़बड़झाला सामने आने के बाद निगम ने उन्हीं को जांच टीम का सदस्य बनाया है जो इस गड़बड़झाले के संदिग्ध सूत्रधार हैं।

आपको बता दें की महकमे ने बिजली घरों में लगने वाले उपकरण ट्रिप रिले को खरीदने के लिए एक खास कम्पनी को ही चुना है और इस कम्पनी से जो ट्रिप रिले खरीदे वो बाजार भाव से तकरीबन डेढ़ गुनी कीमत पर खरीदा है। जिससे विभाग के नाम में एक और नया घोटाला जुड़ता दिख रहा है। ऐसे में सवाल उठना भी लाजमी है कि आखिर क्यों यूपीसीएल महकमे ने खरीददारी के लिए एक ही कम्पनी को चुना ओर क्यों इस से लिये गये ट्रिप रिले को बाजार से अधिक दामों में खरीदा। मामला पूरी तरह से बड़े घोटाले की ओर इशारा करता है।

दरअसल, कम्पनी मार्केट रेट पर ट्रिप रिले को 23,500 रुपए में बेचती है, जबकि वहीं ट्रिप रिले निगम को कम्पनी ने 36,500 रुपए में बेचती है। एक तरफ मास्टर ट्रिप रिले का मार्केट रेट जहां 3,800 रुपए है, वहीं निगम कम्पनी से यही मास्टर ट्रिप रिले 16,500 रुपए में खरीदती है। ट्रिप रिले के टेस्टिंग और लगाने की कीमत कम्पनी बाजार में जहां 4000 रुपए है, वहीं कम्पनी ने निगम से 10,000 रुपए वसूले। समझा जा सकता है कि इस कम्पनी का एक जैसी ट्रिप रिले के सरकारी भाव और मार्केट भाव में कितना अंतर है ? ट्रिप रिले की खरीददारी के खेल में कम्पनी और उर्जा विभाग का यूपीसीएल महकमे की मिली भगत सामने आने के बाद शायद जीरो टॉलरेंस वाली सरकार की नींद भी टूट जाए।

वैसे तो ऊर्जा निगम में घपले घोटालों की लंबी फेहरिस्त है, लेकिन इस समय विभाग के यूपीसीएल महकमे का ट्रिप रिले की खरीदारी करने में बड़ा झोलझाल सामने आया तो आनन फानन में महकमे के प्रबन्ध निदेशक बीसीके मिश्रा ने तीन सदस्यों की टीम गठित कर जांच के आदेश दिए, लेकिन गठित जांच टीम में शामिल मुख्य अभियंता पीसी पांडेय रूद्रपुर में रिले खरीद के दौरान अधिशासी अभियंता तथा निदेशक परियोजना एमके जैन पूर्व में विभाग के एमडी रह चुके हैं। साफ है कि विभाग ने चोर को जज बनाने वाली कहावत को दोहराते हुए घोटाले की निष्पक्ष जांच की मंशा से मुंह फेरा है। इससे जांच टीम गठित करने वाले निगम के एमडी बीसीके मिश्रा की चैतरफा किरकरी हो रही है। इतना ही नहीं उनकी विवादित जांच टीम गठित करने की मंशा पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं।

प्रबन्ध निदेशक बीसीके मिश्रा के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि आखिर रिले खरीद में पहले ही संदिग्ध अधिकारियों को जांच टीम में क्यों रखा गया। उनका कहना है कि अब वह उन पदों पर नहीं है। लेकिन घपले का खुलासा होगा तो जांच करने वाले संदिग्ध अफसर भी कहां बच पाएंगे, मिश्रा साहब!

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