अब शराब बिक्री के लिए मोहल्ले-मोहल्ले घुमेंगे शराब ठेकेदार

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कई जगह जब शराब की दुकानें खुलने का विरोध हुआ तो आबकारी विभाग ने ठेकेदारों को दैनिक आधार पर लाइसेंस लेने का विकल्प दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत शिफ्टिंग के जद में आए जो ठेकेदार महीने भर के लिए ठेका नहीं लेना चाहते, उन्हें दैनिक लाइसेंस दिया जाएगा। यानी एक जगह दुकान नहीं चली या विरोध हुआ तो अगले दिन दूसरे मोहल्ले का ठेका ले लीजिये।

यह आदेश जारी करने के पहले यह भी ध्यान नहीं रखा गया कि प्रतिदिन लाइसेंस की प्रक्रिया, प्रकाशन आदि कार्य कैसे होंगे? यह कार्य कौन करेगा? क्या इसके लिए पर्याप्त स्टाफ है? अगर एक स्थान पर अधिक ठेकेदार आ गए तो लाइसेंस देने का सिस्टम क्या रहेगा ?

इस संबंध में विभाग की ओर से सभी जिला आबकारी अधिकारियों (डीईओ) को निर्देश भी जारी कर दिए गए, लेकिन इस संबंध में ठेकेदारों से मशविरा नहीं किया गया कि क्या वे हर रोज मोहल्ला बदल कर ठेलेवाले की तरह शराब बिक्री कर पाएंगे?

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एक अप्रैल से नेशनल और स्टेट हाईवे के 500 मीटर के दायरे में आने वाली 402 दुकानों को बंद कर दिया गया है। इन दुकानों को रिहायशी इलाकों में शिफ्ट करने की कोशिश की जा रही है, जिसका पूरे प्रदेश में भारी विरोध हो रहा है।

लोगों के विरोध को देखते हुए ठेकेदार भी दुकान खोलने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। शराब की कुल 532 दुकानों में से अब तक 209 ने पैसा जमा कराया है। इसमें वो दुकानें भी शामिल हैं जो शिफ्ट नहीं हुई है। जिन दुकानों ने पैसा जमा कराया है उसमें आधे से अधिक पब्लिक के विरोध की वजह से नहीं खुल पाईं हैं।

हाईवे के किनारे स्थित दुकानों को बंद कराने के मामले में आबकारी विभाग पुनर्विचार याचिका दायर कर सकता है। आबकारी आयुक्त युगल किशोर पंत ने बताया कि कोर्ट ने 20 हजार से कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में हाईवे से 220 मीटर की दूरी पर स्थित ठेकों को बंद कराने का आदेश दिया है। उत्तराखंड में कई ऐसे इलाके हैं जहां हाईवे से 50 मीटर की दूरी के बाद या कोई नदी या फिर खाई है। ऐसे में पर्वतीय इलाकों में शराब के ठेकों को हाईवे से निर्धारित दूरी कम करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई जा सकती है। आबकारी महकमा इसके लिए कानून विभाग की राय लेगा।

आबकारी के ठेकों को बचाने के लिए शहरों और कस्बों से गुजरने वाले स्टेट हाईवे को डिनोटिफाई भी किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद आबकारी विभाग की ओर से प्रदेश सरकार को इस संबंध में सुझाव दिया गया था, लेकिन सरकार ने इसे खारिज कर दिया। जानकारी के मुताबिक, सरकार अब शहरों और कस्बों से गुजरने वाले स्टेट हाईवे को डिनोटिफाई कर सकती है। जिसके लिए लोक निर्माण विभाग को इस संबध में प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया है।

माना कि शराब उत्तराखंड के लिए एक अच्छे राजस्व कि जननी है लेकिन अगर अपने ही लोगो की मौतों का कारण ये शराब बन रही हो, जो की निसंदेह बन रही है तो फिर ये राजस्व किसके लिए ? और अगर शराब बंदी को लेकर फिर भी कोई संदेह हो तो उत्तराखंड की सरकार को बिहार से सीख ले लेनी चाहिए। क्योकिं हमारे सविंंधान में शराब बेचना कोई मौलिक अधिकार नहीं है जबकिं राइट टू लिव सबका मौलिक अधिकार है।

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